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अनुसन्धान ३२
ढूंक नोंध
१. एक साध्वी-प्रतिमा श्रीभद्रेश्वर तीर्थ ए कच्छर्नु पुरातन अने भव्य जैन तीर्थ छे. तेनुं सदीओजूनुं विशाळ जिनालय ई. २००१ ना २६ जान्युआरीना भीषण भूकम्पने कारणे हानिग्रस्त थतां हाल तेना स्थाने पायाथी नूतन जिनालय बंधाई रयुं छे. आ माटेना पाया- खोदकाम करतां नीचेथी केटलाक खण्डित प्रतिमा-अवशेषो मळ्या छे, जेमा मुख्यत्वे विधर्मी आक्रमणकारोए खण्डित करेली जैन मूर्तिओ ज छे.
आ मूर्तिओ महदंशे लेख-विहोणी छे, छतां जे बे-त्रण प्रतिमानी पलांठी पर थोडाक अक्षरो जोवा मळे छे, ते परथी आ अवशेषो १४ मी शताब्दीना होवानुं मालूम पडे छे.
आ खण्डावशेषोमां एक साध्वीजीनी खण्डित प्रतिमा पण छे, (तेनी छबी आ अंकना मुखपृष्ठ पर मूकी छे). आ प्रतिमानी मुखाकृति कापी नाखेली हालतमां छे. डाबो हाथ तथा पग पण कपायेला छे. मस्तकना पृष्ठ भागे रजोहरण लटकतो स्पष्ट देखाय छे, जेना आधारे आ कोई गृहस्थ स्त्रीनी नहि, पण जैन साध्वीनी मूर्ति होवानुं सिद्ध थाय छे. साध्वीजी पाटला पर बेठेला छे. तेमना बे पडखे बे स्त्रीओ, सम्भवतः साध्वी-शिष्याओ, बेठी छे. प्रतिमानी पलांठीमां लखेला अक्षरो छे: "राज्ञी राजमत". राजमत ए राजीमतीनुं देशी रूप छे, ते उपरथी प्रसिद्ध 'नेम-राजुल' वाळां राजमतीनी आ मूर्ति होवानी कल्पना थाय खरी. परन्तु तेनी साथे जोडेल 'राज्ञी' शब्द उपर विचार करतां लागे छे के आ कोई राजा के ठाकोरनी राणी होय- मध्यकाळमां, अने तेणे दीक्षा लीधी होय पण दीक्षा पछी ते 'राज्ञी' तरीके ज ओळखाती रही होय, ए वधु शक्य छे. आ सिवाय बीजा अक्षरो वंचाता नथी, अथवा खरेखर अन्य कोई अक्षरो होवा कोई निशान ज नथी, तेथी आटला ज अक्षरो प्रतिमा पर छे, तेम लागे छे. जे होय ते, पण मध्यकाळमां साध्वीजीनी प्रतिमाओनी स्थापना थती हती, तेनां जे गण्यागांठ्यां उदाहरणो उपलब्ध छे, तेमां आ प्रतिमाथी एक महत्त्वपूर्ण दाखलो उमेरायो छे.
-शी.
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