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________________ June-2005 23 श्रीपुण्यसागरसूरिकृत सूतक चोपाई सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय सूतक एटले जन्म तेमज मृत्युना अवसरे पाळवामां आवतो एक रिवाज. आ रिवाज भारतवर्षमा हजारो वर्षोथी परम्परागत प्रचलित/स्वीकृत छे. जेना घरमां पुत्रादिनी प्रसूति थई होय अथवा मृत्युनी घटना घटी होय, तेनाथी देवपूजा/ जिनपूजा न थाय, तथा तेना घरनो आहार मुनिओथी न लेवाय - आवी शास्त्रमान्य परम्परा छे; अने तेना नियमो केवा केवा होय छे तथा ते नियमो अंगेनो निर्देश कर. शास्त्रग्रन्थमां सांपडे छे, तेनुं वर्णन आ चौपाईमां थयुं छे. केटलाक लोको सूतकमां मानता नथी. तो पश्चिमी संस्कारना प्रभावमां आवेलो वर्ग वळी आ बधी बाबतोने अन्धश्रद्धा-वहेम वगेरे-रूपे विचारे छे. ते बन्ने प्रकारना लोकोने माटे शास्त्रानुसारी आ चौपाई घणी मार्गदर्शक बनी शके. रजस्वला स्त्रीओ अंगेनी जे शास्त्रीय मान्यता तथा परम्परा छे, तेनुं पण आमां निरूपण थयुं छे. आजे आ बाबतनी मर्यादा ज्यारे नामशेष थवा जई रही छे, त्यारे ते मर्यादा केटलीबधी शास्त्रोक्त तथा अनिवार्य छे ते समजवामां आवी रचना घणी उपकारक थाय तेम छे. अंचलगच्छीय आ. पुण्यसागरसूरिए सं. १९०६ मां जखौ (कच्छ) बन्दरना पोताना चातुर्मास दरम्यान आ चौपाई रची होवानो उल्लेख कडी-३०३२ मां छे. अचलगच्छ ज्ञानभण्डार-मांडवी-कच्छमांथी प्राप्त थयेल बे प्रतिओने आधारे आ सम्पादन करवामां आव्युं छे. ते ज्ञानभण्डारना कार्यवाहकोनो ऋणस्वीकार करुं छु. सूतक चोपाई ॥ अथ सुतकनी चोपई लख्यते ।। श्रीसरसती देवी समरू माय, सहगुरुने बलि लागुं पाय । विचारसार ग्रंथथी हुं कहुं, ते परमारथ जांणों सहु ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520532
Book TitleAnusandhan 2005 06 SrNo 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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