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June-2005
काळे विरहिणीने प्रियतमनो संयोग थयेलो. अ अगाशीओ गई अने चारे दिशामां चार सिंह दोरती आवी ! आ हस्तप्रतना चित्रनुं रहस्य डॉ. भायाणीओ समजाव्यं. चन्द्रमां मृग छे. अथी चन्द्र ज्यारे आथमवा जाय त्यारे चन्द्रमां रहेलुं मृग ज चन्द्रने वारे ! त्यां सिंह होवाने कारणे ! आम मृग चन्द्रने अकेय दिशामां जवा न दे अने अगासी आवेलो चन्द्र क्यारेय न आथमे, मध्यमां ज रहे अने विरहिणीने रात पूरी थतां ज आवी पडनार वियोगमांथी मुक्ति मळे ! आ अर्थ डॉ. भायाणीओ समजाव्यो अने विरहिणी तथा चन्द्र, मृग, सिंह, राहु वगेरे साथे संकळायेला आवा सन्दर्भो आप्या ! आवुं ज फिलिप्स युनिना डॉ. मिशेल हानना KR ना सम्पादन-सन्दर्भे 'जलायाहा' के 'जलायहुवा'नी मदनसन्दर्भे पत्र चर्चा छे.
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डॉ. भायाणीने एमनी कारकिर्दीना अने संशोधनना आरंभना गाळामां ज भारतीयविद्याभवन जेवी संस्था अने अना ग्रन्थालयनो लाभ मळ्यो ते प्राणवायु जेवो प्रभावक बन्यो. ओ साथे ज जिनविजयजी जेवा समर्थ गुरुने कारणे अपभ्रंश अने प्राकृतना ज्ञानराशिनो लाभ मळ्यो. प्रकृतिथी ज विद्याना ज प्रेम अने ताटस्थ्यने वरेला आ संशोधकने आ गाळामां ज पूर्वना अने पश्चिमना उत्तम विद्वानोना ग्रन्थोनो लाभ मळ्यो. भाषाशास्त्र, व्याकरण, बोलीविज्ञान, व्युत्पत्ति, प्राचीन मध्यकालीन कृतिओनां पाठसम्पादननी पद्धति, लोकविद्या, शैलीविज्ञान ओम अनेक ज्ञानशाखानां पुस्तकोनो अहीं लाभ मळ्यो. पूर्वकाळनी कृतिओना मूळ पाठने सम्पादित कर्या पछी भाषाशास्त्र ज नहीं, परंतु अन्य विद्याशाखाओनी मदद लईने, इन्टर डिसिप्लिनरी अप्रोचथी आवां सर्जन अने तेनां प्रकार, स्वरूप, सामग्रीने पामवानी दृष्टिनुं घडतर थयुं. पाठनिर्णय, अर्थदर्शन अने अभ्यासमां पायानी विचारणाना अभिगमनो विकास थयो. आथी ज डो. भायाणीनां कार्य द्वारा ज मध्यकालीन साहित्यना अध्ययनमां नवा नवां परिमाणो उमेरायां.
डॉ. भायाणी पहेलां पण मध्यकालीन साहित्य संशोधनक्षेत्रे समर्थ विद्वानोओ शास्त्रीयकक्षानां सम्पादनो कर्यां हतां. अ अभ्यासमां शब्दार्थ, छन्द वगेरे दृष्टि पण विचारायुं हतुं. परंतु डॉ. भायाणीमां जे विशिष्ट अने विशेष हतुं ते विविध भाषाओ अने भाषाशास्त्रनुं ज्ञान. आ कृतिओना, ते समयना साहित्यना स्वरूपने अने आजना साहित्यथी जुदा पाडनारा भेदने भायाणी ज समजी शक्या, अभ्यासमां उतारीने समजावी शक्या. मध्यकालीन साहित्य
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