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________________ 61 फेबुआरी-2005 श्राविकाणां चतुर्विंशति नमस्कार सं. विजयशीलचन्द्रसूरि अपभ्रंश भाषामां अने वस्तु छन्दमां रचाएली एक सुन्दर रचना अहीं प्रस्तुत छे. आना कर्ता विषे कशी जाणकारी प्राप्त नथी. आ रचनानी एक प्रति भावनगरनी जैन आत्मानन्द सभामांनी मुनि भक्तिविजय-ज्ञानभण्डारमां छे, तेनी जेरोक्सना आधारे प्रस्तुत सम्पादन थयुं छे. प्रति बे पानांनी छे, अने तेना प्रान्ते "इति श्रीश्राविकाणां चतुर्विंशति नमस्कार" एम लखेलुं छे ते पछी सं. १९६५ आम लखेलुं वंचाय छे, जे सम्भवतः भक्तिविजयजी महाराजे लखेलुं लागे छे. आनो अर्थ एवो थाय के कोई भण्डारनी प्राचीन प्रतिमां आ रचना हशे, अने १९६५ मां भक्तिविजयजीए तेनी नकल करावी लीधी हशे. आ अनुमान एटला माटे करवू जोईए के भक्तिविजयजीए तेमना हस्तक अनेक ग्रन्थो के आवी कृतिओनी नकलो हस्तप्रतिरूपे करावी हती, तेमज ते रीते अनेक कृतिओनो उद्धार करी तेने जीवती राखवामां पोतानी विद्वत्तानो तथा सज्जतानो विनियोग को हतो. आथी, आ कृतिनो रचनासमय १४मो के १५मो शतक होय तो नवाई नहि. छेल्ली, २५मी गाथामां 'संतिभद्दु' एवो शब्द छे, ते आना कर्ताना नामनो निर्देश आपतो होय, तेवो वहेम पडे छे. परन्तु आ विषे अधिकृत तथ्य शोधq जरूरी तो खलं ज. आ रचना २४ तीर्थंकरोनी प्रभातसमये करवामां आवती स्तवनारूप रचना छे. प्रत्येक गाथामां आवतो 'सुविहाणु' शब्द ए 'सुप्रभातं'नो अर्थ धरावतो शब्द छे. संस्कृतमां एक 'सुप्रभातं' स्तोत्र प्रख्यात छे तेवू स्मरण छे. अ ज रीते आ स्तवनाने पण 'सुविहाणु' तरीके ओळखी शकाय. आ रचनाने अन्ते 'श्राविकाणां' पद छे ते ध्यानपात्र छे. 'श्रावकाणां'न लखतां 'श्राविकाणां' लख्युं छे तेनो अर्थ, कोई विद्वत्पुरुषे श्राविकाओ गाईने बोली शके-प्रभाते, ते हेतुथी आ रचना रची हशे, एवो थई शके. कोईना ध्यानमां आनी बीजी प्रति होय के आवे, तेमज आना कर्ता विषे पण जाणकारी होय, तो जणाववा विज्ञप्ति छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520531
Book TitleAnusandhan 2005 02 SrNo 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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