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________________ December-2004 79 पत्रचर्चा मुनि भुवनचन्द्र सम्पादकवर्य, 'अनु०'-२८मां पत्रचर्चामां आपे 'मरुदेवा' शब्द 'त्रिषष्टि' मां वपरायो छे ए हकीकत प्रत्ये ध्यान दोर्यु छे ते बदल आभारी छु. एना आधारे आ शब्द घणो जूनो सिद्ध थाय छे. जो के 'अनु०'-२७मां में वापरेलो शब्द 'मारुगूर्जर' जूनी गुजरातीना निर्देश माटे हतो. जूनी गुजरातीने विद्वानोए अनेक नामे ओळखावी छे. आ सन्दर्भमां श्रीजयन्त कोठारीना विचार अहीं नोंधवा जेवा छे : "हकीकतमां ८मीथी १९मी सदी सुधी पश्चिम रजपूताना अने उत्तर गुजरातनो घणो भाग संयुक्तपणे 'गुज्जरत्ता' के 'गूर्जरत्रा' तरीके ओळखातो हतो, तो ए समयनी भाषाने गूर्जर भाषा के गुजराती भाषा कहेवामां शुं खोटुं?.... डॉ. टी.एन.दवे, डो. भायाणी जेवा विद्वानो दशमी-बारमी सदीमां उद्भवेली विशाळ प्रदेशनी आ भाषाने 'गुजराती (के गुजरातीनी पहेली भूमिका के प्राचीन गुजराती) कहेवानुं पसंद करे छे. जो के खरी परिस्थिति आपणा लक्षमां होय तो नामनो प्रश्न गौण बनी रहे छे." (भाषापरिचय अने गुजराती भाषानुं स्वरूप, पृ.८४) "मरुदेवा' शब्दने 'मारुगूर्जर' न कहेतां प्राचीन गुजराती कहीए ए विशेष उचित छे. (विक्रमनी आठमी शताब्दीथी 'गुज्जर' भाषानो पिण्ड बंधावो शरू थई चूक्यो हतो.) आटलो सुधारो कर्या पछी पण आपे उठावेलो प्रश्न ऊभो रहे छे : शुं आ. हेमचंद्र ऊपर पण जूनी गुजरातीनो प्रभाव हतो एम मानवू ? आवा समर्थ व्याकरणविद् प्रचलित भाषाना प्रभावतळे अभानपणे कोई शब्द प्रयोजे एम न मानी शकाय; पण 'मरुदेवा' प्राचीन गुजरातीमां अने जैन वर्तुळोमा स्थिर थवा मांड्यो होय अने आ. हेमचन्द्रे सभानतापूर्वक ए शब्द स्वीकार्यो होय एम शुं न बनी शके ? "सिद्धमातृकास्तव'मां अने 'शत्रुजयमाहात्म्य'मां पण आ जातना प्रभाव हेठळ आ शब्द प्रयोजायो होय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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