SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ December-2004 55 ४१२ विकंथा मत्सर शोक वैर विरोद्धाए तिर्यंत्त्वादिकनां समइ ए ॥९॥ ४१३ श्रीवसुपूज्य नरेश पदमावति जया राणी स्यु अति उत्सवइ ए ॥१०॥ ४१४ देखी निजसुतऋद्धि अति मनि हरखतां वंदी प्रभु देशन सुणइ ए ॥११॥ ४१५ अति लघुकरमी जीव सुक्षिम प्रमुखाए गणधर श्रीजिन दिखीया ए ॥१२॥ ४१६ घरणी पदमा होइ जिननी महासती सुखशादिक वर श्राविका ए ॥१३॥ ४१७ जननी जयादिक होइ जिननी श्राविका संघ चतुर्विध थापीया ए । ४१८ श्रीवासुपूज्य जिनराय सूक्ष्म प्रमुखा ए बासठि गणधर थापी ए ॥१४॥ ४१९ शासनसुरो कुमार चंडा देवीय प्रभुनी शासनदेवता ए ॥१५॥ ढाल - सरु विण गछ नही । ४२० समवसरण सुर मंडीउं बारवती वन मांहि रे । लालमणी सारिखो आवि अरिहा लांबीअं बाह रे । लालभणी सारिखो आविओ ॥१॥ .... । नि(ति?)म विजयो बलदेवो रे । इम वनपालि ते विनवीउ नरहरि करि जिन सेवो रे ॥२॥ लालमणी० । ४२२ इति वनपाल वचन सुणी हरखई दिइ बहु दान रे । निजऋधि हरि-बल नीसरी जिन वंदइ बहुमानइ रे ॥३॥ लालमणी० । ४२३ तिलक करी इक नर चड्या घोडइ तिलकीटा कुंकइ रे । महीपति गज चडी इक नरा इक नर वेसर मूंकइ रे ॥४॥ लालमणी० । ४२४ एक सुखासण पालखी इक चडइ चकनोलि रे । एक रथवाहणि रथ चड्या एक नर उठत टोलइ रे ॥५॥ लालमणी० । ४२५ एक नर पाला नीसरइ धर्मी धर्मनि काजिरे । एक नर कौतुक पेरीया एक नर मित्रनी लाजि रे ॥६॥ लालमणी० । ४२६ श्रीजिन मधुरीय देशना योजनगामिनी वाणी रे । द्राख साकरनई हरावती शुचि जिम गंगानुं पाणी रे ॥७॥ लालमणी० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy