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अनुसंधान-३०
२८५ तुं त्रिभुवनजन-मोद विधायी तुं मुझ नंदन त्रिजगधणी । तुं जव जाय तुं जगसुख दायक तव सुर रणझणी घाट घणी ||७||
लालमणी रे ला० । २८६ सुरपति नारी हूलाई लडायो हूं पणि इंद्रइ प्रणमि थुणी । तुं सुत रवि जायो तस दिनथी घरि पाय ठेलीइ कोडि मणी ॥८॥
लालमणी रे० ॥ २८७ मात हूलावति चंद्र देखावति रयणमाल सुत गलि रोपी । चंद्र-बिंब मागइ जब नंदन तव दीसइ प्रभु सिर टोपी ॥९॥
लालमणी रे ला० । २८८ नीलकमल दल लोचन मोहन चंद्र वदन सुत हरि रूपी । होठ गुलाल रंग परि शोभित नाभि सुधारस भर कूपी ॥१०॥
लालमणी रे ला० ॥ २८९ जितसुरशाखि सुचीवरयुगलो वदन केतकीगंधो री । सत्तरि ... देह मणिबंधो सकल कलागुण सिंधो रे ॥११॥
लालमणी रेला० ॥ २९० सहस अठोत्तर लक्खण धारक प्रकृति विचक्षण वाधइ रे । रूपई सुंदर विजितपुरंदर सर्व कामगुण साधइ रे ॥१२॥
लालमणी रेला० ॥ ढाल । राग-सबाख ॥ इहा पोसोई तुं - ढाल । २९१ चलो पूता पाठशाला नरा जे ज्ञानइं विशाला ।
शोभति ते जिम सुरतरुडाला सोभति नरा-निव-सभामां हि नाणिवाला।
राजति जिम नवि नारीसिर टाला ॥१॥ चलो पूता पाठशाला ॥ २९२ खोलीइ उरडे ताला । भरी लाइ कनक थाला
भरी निपकवान थाली । प्रीसीइयु जिमइ साजन थाला ॥२॥ २९४३ भणि कंचण दोऊ साजन सार भूषणां देती ।
मत करो किसइ कूरी टाला ॥३॥
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