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December-2004
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२५१ तुझ लाडिकडो ए सुरगिरि जीवित जीवो ।
तुझ लालमणीनां पगलां इंद्र न लाडई ।
तस मुकुट मणी मां हरसि लागी जाडि ॥५॥ २५२ बलीहारी करस्यइ इंद्रभवननी नारी ।
चउसठि सुरनायक सुत तुझ सेवक बारि ॥६॥ २५३ छपन्न दिशिकुमरी इम हरर्षि गायति ।
वरवीणा उभी जिन आगलि वायंति ॥७॥ २५४ जिन आगलि हरखी दिशिकुमरी नाचंति ।
जिन-जनम-महोत्सव करती शुभ याचंति ॥८॥
ढाल
२५५ सुणि जिन त्रिभुवन वेधनो गिरि शिर परि अवलाई ।
आसन इंद्रनां श्री जिन जन्मि हलावीआंए ॥१॥ २५६ हरि चडीओ अति कोपि अवधि जाणीउं ।
अम्ह जन्ममंगल आवीआं रे ॥२॥ २५७ सुरपति हवो प्रमोद सुरवर घंटना ।
नादि सुरवर मेलिआए ॥३॥ २५८ सुर वाहनि विमानि अंबर मागि ।
सुरनी कोडिं भेलीआए ॥४॥ २५९ हरि जिनजननी पासिं आवी प्रणमीय ।
जिनजननी कीरति करइए ॥५॥ २६० रयणकूखनी धारि हूं हरि मन धरे ।
तुझ सुतनो हुं किंकरोए ॥६॥ २६१ इम कही श्रीजिनराय लाइ करतलि ।
एक जिनबिंब तिहां धरइ रे ॥७॥
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