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________________ December-2004 त्रोटक १६२ भोग छंडी बहु महोत्सव लेइ दिख्या गुरुतणी । संवेगि गुरुकुलवासि विनयई एकादश अंगी भणी | संवेग वास्यो देश विचरी विषय-इंद्रिय वशि करी । वीस थाव (न) कि रमइ मुनिवर शुद्ध करतो गोचरी ॥२॥ १६३ राजऋषि पदमोत्तरो फासति अभिनव सूरो । विंशति थान मंजल चरण कारण गति पूरो ॥३॥ त्रोटक १६४ चरण पूरो मनि अंकुरो प्रथम थानक जिनतणी । भाव - पूजा भगति करतो प्रणमतो जिन गुण थुणी । इंद्र चंद्र नरेंद्र पूजा द्रव्यनी अनमोदतो । सकल जंतु दयालू जिनना गुण समुद्र विलोलतो ||४|| १६५ बीजि थानकि सिद्धनि ध्यान रमी मुनि राजो | त्रीजइ प्रवचन संघनी भगति करी बहु काजो ॥५॥ त्रोटक१६६ काज गुरुना करीइ चउथइ भगति गुरु गुणगान रे । श्रुत वयो व्रतधर भगती पंचमइ तस मांन रे । सूत्रधरथी अर्थधरनइं विशेषिं बहुमान रे । थानक छच्चइ करी श्रुतधर - भगति अन्नह पान रे || ६ || १६७ तपसीय - भगतीय सातमई अठमई अभिनव - नाणो । पठन गुणन तस चिंतनं नवमइ समकित ठाणो ॥७॥ १६८ नाणविनयो करइ दसमहं सर्व गुणमणिसार मई । षडावश्यक करइ मुनिवर एक चिंतइ ग्यारमई ॥८॥ १६९ बारमइ शुचि शील पालइ सर्व शुद्धाचारस्युं । शीलधर अवदानथि तन करइ मुनि विस्तारस्यु ||९|| १७० परिहरीय कुशील संगति सुशीलह संगति कारी सर्व थानकी रमइ मुनिवर अरिह भगतिं चित धरी ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only 33 इति खट् दी । www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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