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________________ December-2004 29 १२८ गज-देवो तिहां आवी ओ दिइ नृपनइं आलिंग रे । सुरतरु इक फल आपीओ नरपति अति मन रंग रे ॥९॥ अनशन० ॥ १२९ तनु संकोच विणासगं निशि नृप करइ फलभोग रे । इम कही गज सुरपदि गयो राय हुओ नीरोग रे ॥१०॥ अनशन० ॥ ढाल - चंदन उत्कंठा सुरपुरी ॥ राग - कल्याण ॥ १३० गज अनशन ठामि जिनतणो प्रासाद करावी बहुगुणो । गज अन० । तिहां जिन प्रतिबिंब सरूपस्युं नृप शुभ परिणामई मन वस्युं ॥१॥ गज अन० ॥ १३१ जगि जे त्रिदंड योगई करी चडी नृप जीवइ कर्मतती घडी । गज० । जे जिन प्रदेशस्युं अतिजडी घनघाति तीअ तेहमां वडी ॥२ गज० ॥ १३२ अति विषमी ते जिम उंटडी भव भमतां जे नृपनइं नडी । शुभ ध्यान गगनि भर तडतडि उछलवा लागी जिम दडी ॥३॥ गज० । १३३ गज पा नरपतिथी जावा घडघडी ते कर्मतती होइ सांकडी । संध्याई जिम कज-पांखडी लय लागो जब नृप बहु घडी । ॥४॥ गज० । १३४ तिहां खिपकश्रेणी नृपकर चडी तब कर्म राशि त्रूटी पड़ी । नृप हुई अंतगड केवली । निर्वाण नम्युं सुर तिहां मळी ॥५॥ गज० ॥ १३५ इति विमलबुद्धि मंत्री कह्या जिम न्यानी गुरुमुखिथी लह्या । पुण्याढ्यराय-चरितं सुणी । प्रतिबुद्धि राजसभा घणी ॥६॥ गज० ॥ ढाल - राग - केदारु ॥ सरसति अमृत वसि मुखी- ए ढाल ॥ १३६ एक दिनि मणि सिंहासन बइठो जिम रोहणगिरि दिनकर पइठो ॥१॥ १३७ पदमोत्तर नरनाथो शोभति जिम गयणंगणि चंदो । राजसभा देतो आणंदो बोलति उपसम कंदो ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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