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________________ 86 अनुसंधान-२९ २. जैनकथाओ- मनोविज्ञान : जैनधर्ममां पण कथाओ धर्मना तत्त्वज्ञानने स्पष्ट अने सर्वग्राह्य बनाववा प्रयोजाइ. तीर्थंकरो, तीर्थो, व्रत-नियम वगेरेनां प्रभाव अने माहात्म्य माटे पण कथाओनो उपयोग थयो. मनोरंजक लोककथाओ श्रोताओने आकर्षवा अने ए द्वारा ज्ञान-उपदेश आपवा माटे घटतां परिवर्तनो साथे रजू करवामां आवी. ___आ उपरांत पण एक विशेष अने विशिष्ट शक्ति बौद्ध अने जैन कथाओमां छे. आ बन्ने धर्मनी कथाओमां संसारनी असारता अने वैराग्यवृत्तिना संस्कारो दृढ करवानी शक्ति छे. आ दृष्टिले आ कथाओ विषयलोलुप संसारी जीवोनी मानसिक रीते सारवार करवानी पद्धति छे. मोटा भागना धर्मो माणसनी अज्ञात तत्त्व सामेनी भयवृत्ति अने बधा ज प्रकारनी माणसनी इच्छाओ, आशाओ, आकांक्षाओने संतोषे अने प्रार्थना अने पश्चात्ताप कर्ये बधां ज गुनाओ-पापोनी माफी आपे एवा दयाळु पिता जेवा इश्वरनी कल्पनाथी अनुयायीओने धर्म तरफ आकर्षीने धर्माभिमुख राखवानो मनोवैज्ञानिक अभिगम अपनावे छे. 'ध प्रोडिगाल सन'नी बायबलकथामां एर्नु मूर्त रूप छे. परंतु भारतीय तत्त्वज्ञानमां कर्म अने तेनां फळ के परिणामनो सिद्धांत आथी जूदो ज छे. माणसने, प्राणीमात्रने तेनां कर्मोनां फळ भोगव्ये ज छूटको छे. एमां जप तप पश्चात्तापथी कोई त्रीजी महासत्ताना हस्तक्षेप अने माफीनो स्वीकार नथी. प्राणीमात्रे जाते ज कर्मनां फळ हसते के रडते मुखे भोगववानां ज छे. आ सिद्धांतने कारणे जैनधर्मनी कथाओ क्रमविपाक रूपे जे कंई यातना-कष्टादि पडे ते सहन करवानी ज नहीं, सामे पगले जाते ज ते बधुं वहोरी लेवानी मानसिक शक्ति कथाना माध्यमे माणसने सिद्ध करावी आपे छे. आथी ज जैनधर्मनी कथाओमां मानसिक अने शारीरिक यातनानां आलेखनो थयां छे. जीवतां सळगावी मूकवामां आव्यां होय, वेगे दोडतां रथनां चक्रो नीचे दबाइ कचडाइने मरतां होय, हिंसक पशुओनां तीणां नहोर अने दांतथी मृत्युना मुखमा होमातां होय, पोताना ज हाथे पोतानां ज शरीर पर सडेला भागोमांथी खरतां कीडांने फरी पोतानां घावना धारां पर मूकीने जाते ज काळी बळतरानी असह्य वेदनानो अनुभव करतां होय एवां पात्रो जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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