SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ August-2004 79 पामी एटलं ज नहीं परंतु जैन प्रवाहमां पण एनां अवनवां रूपो बंधाया. समय-समये आ कथाओ रूपांतर पामती रही अने एना परनी बहुसंख्य रचनाओ थइ. 'सूडाबहोंतेरी'ने अन्य कामकथाओ तो जैनस्रोतमां ज उद्भवी अने विकसी छे. संसारनी असारता दर्शाववा अने विषयासक्तिथी मन दूर रहे ए माटे जैन यतिओ द्वारा आ प्रकारनी कथाओ लखवामां आवी. रूपकग्रन्थि वाळी कथाओ पण सामान्य स्रोतनी छे. मन, शरीर, आत्मा वगेरेने रूपक द्वारा संवाद रूपे कथाओ रजू करे छे. तन रेंटियो छे के आत्मा माटे तो भाडाना मकान जेवू छे : आ भारतीय तत्त्वज्ञानलोकस्वीकृत एवं रूपक छे. आने विषय करीने दरेक भारतीय धर्ममां अनेक कथाओ छे. जैनकथासाहित्यमां आवी अनेक चोटदार, मर्मस्पर्शी कथाओनां रूप बंधायां अने तेना पर दृष्टांतथी मांडीने ते प्रबंध सुधीनी रचना थइ. धर्म-धर्म वच्चेना मान्यताभेद, मतभेद अने मनभेदनी असर दरेक धर्मना कथासाहित्य पर पडी छे. आ प्रकारमा अनेक कथाओ रचाइ एमाथी ज प्रवल्हिका अने मंथलिका जेवा वार्ता प्रकारो अस्तित्वमां आव्या. प्रारब्ध चडे के पुरुषार्थ : ए वाद पर विविध कथाओ छे. अन्य धर्मो अने मान्यताओ पर हास्यकटाक्ष अने उपहास करती कथाओ, स्वरूप सामान्य स्रोतनुं छे, परंतु एमांथी कटाक्षसभर धूर्ताख्यान अने भरडाबत्रीसी-भरटक द्वात्रिंशिका-अने विनोदकथासंग्रह जेवी कृतिओ तो जैन कथासाहित्यमां ज रचाइ अने जळवाइ छे. जैनकथानां मूळ : जैन कथासाहित्यनां प्राचीनतम मूळ आगममां छे. अर्धमागधीमां अहीं धर्मना तत्त्वज्ञाननी साथे ज कथाओ पण मळे छे. आगमना त्रीजा चूळामां मळती महावीर प्रभुना जीवननी कथा, पांचमा अंगनी भगवतीविवाह पण्णत्ति, छठ्ठा अंगमां महावीरस्वामीना मुखे कहेवाती नायाधम्मकहा वगेरे इसवीसन पूर्वेनी प्राचीनतम जैनकथाओ छे. एमां दृष्टांतकथा, रूपककथा, साहसशौर्यकथा, परीकथा, चोर-लूटारा कथा, पुराणकथा अम अनेक प्रकारो जोवा मळे छे. आगमना सातमा, आठमा अने अगियारमा ए त्रण अंगनुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy