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________________ August-2004 १. भगवान- लांछन वृषभ, २. भगवाननी बे पत्नीओ-सुनन्दा तथा सुमंगला, ३. भगवाने दीक्षा वखते लोच करती वेळा इन्द्रनी विनंतिथी राखेली केशजटा, तथा ४. भगवानना वार्षिक तपर्नु श्रेयांस द्वारा इक्षुरस वडे थएल पारणुं । आ चारेय विषयो तेमणे भगवानना जीवनक्रमानुसार ज गोठव्या छ । जेमके, भगवान जन्म्या त्यारथी ज तेमना शरीर पर वृषभ, लांछन हतुं, त्यार बाद यौवनवयमां सुनन्दा-सुमंगला साथे तेमनो विवाह थयो, पछी दीक्षा लेती वखते लोच करतां रहेवा दीधेल केशनी जटा, अने पछी एक वर्षना निर्जळा तप बाद श्रेयांसकुमारे इक्षुरसथी करावेलुं पारणुं । परमार्हत कवि धनपाले ऋषभपंचाशिका तथा 'ते धन्ना जेहिं दिट्ठो सि'- ए ध्रुव पदवाळी ऋषभस्तवना (अनुसन्धान-२४)मां ऋषभदेव प्रभुनी अत्यन्त माधुर्य अने प्रसन्नता भरेली तथा अनेक नवी उपमाओ अने कल्पनाओथी छलकाती भावभीनी स्तवना करी छे । ज्यारे अहीं तो कवि मात्र चार ज विषयोने लक्ष्यमा राखी विविध कल्पनाओ तथा अलंकारोथी परिपूर्ण स्तवना करी रह्या छे जे वांचतां ज हृदय तरबतर थई जाय छ । __प्रत्येक विषयनां उदाहरण जोईए । १. (प्रथम परिच्छेद - पद्य ५) वृषभलांछनवर्णन (१) बुद्धिमान पुरुषोना हृदयरूपी गोचरमां चरती, उल्लसित चरण तथा उत्तम रसयुक्त, भगवाननी गौ-वाणीए ज मने अत्यन्त पुष्ट कर्यो छे; माटे ते भगवाननी सेवा करवाथी ज हुं कृतज्ञोमां अग्रणी गणाईश, एवं विचारीने वृषभे लांछनना मिषे जेमनो आश्रय लीधो ते जिनने अमे स्तवीए छीए । (२) (पद्य २०) आ भगवाने पोतानी गतिथी हंस-ऋषभ तथा गजने जीती लीधा । तेथी हारेला त्रणमांथी प्रथम-हंस देवलोकमां चाल्यो गयो, अने अन्तिम-गज वनभूमिमां जतो रह्यो; ज्यारे वचला वृषभे-महापुरुषोनो कोप प्रणाम करीए (नहि) त्यां सुधी ज रहे छे - एवं विचारी लांछनना व्याजे जेमनां चरणोनो आश्रय कर्यो ते जिनपति तमारी सम्पत्तिने पुष्ट करो। Jain Education International For Private.& Personal Use only . www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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