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अनुसंधान - २९
महिमंडल मोटो तूं देवह, चौसठ इन्द्र करे तुझ सेवह त्रिभुवन ताहरुं तेज विराजे, जस परताप जगत्रमें गाजे ॥ २३ ॥
केता देस कहुं वलि नामें, प्रभुनी कीरति जिण जिण ठा पुर पट्टण संवाहण गामे, सुणतां नाम भविक सुख पामे ||२४||
छंद देसनाम
अंग वंग कलिंग मरुधर मालवो मरहट्ट अ
कास्मीर हूण हमीर हब्बस सवालख सोरट्ठ ए कामरूअ कूंकण दमण देखें जपे तोरो जाप ए इणि देस अविचल प्रबल प्रतपे पास प्रगट प्रताप ए ॥ २५ ॥
लाट ने कर्णाट कन्नड मेदपाट मेवात ए
वलि नाट घाट वेराट वागड वच्छ कच्छ कुशात ए सतिलंग गंग फिरंग देसें जपे तोरो जाप ए
इणि० ||२६||
वलि ओड तोड सगोड द्राविड चउड नट महाभोट ए पंचाल ने बंगाल बंगस सबर बब्बरकोट ए मुलतान मागध मगध देसें जपे तोरो जाप ए इणि० ॥२७॥
नमि आड लाड कुणाल कोसल बहुलि जंगल जाणिई खुरसाण रोणअ इराक आरबं तुस (रु) क वार्त्त वखाणि कुरु अच्छ मच्छ विदेह देसे जपे तोरो जाप ए इणि० ॥२८॥
कासीअ केरल अने केकइ सूरसेन संडिब्भअ गांधार गुर्जर गाजणें वडिआर गूड विदर्भओ आभीर ने सौवीर देखें जपे तोरो जाप ए इणि० ॥२९॥
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