SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ August-2004 59 श्रीसुरेन्द्रसूरिकृत (?) श्रीआदिनाथवीनती श्री आदिनाथ अवधारि करि प्रसादु, तइं विनवउं हिव जिसइं रहितप्रमादु आगइ घणा भवभवार्णव वारि पूरि, हउं मेलविउ कीयउ तव कर्म दूरि. १ गाढउ जिवीनउ करुणानिवास, केडउ न छांडउ मुज कर्मदासु किमइ करी प्राणी विनाणी आजु, ए सीष(ख)वी सामि तु सारि काजु. २ संमोहनिद्राभरि आजु जागी, जउ चित्ति जोयउ परमार्थि लागी तउं एकु शत्रुजय तीर्थनाथु, तउं देवु दीठउ जाई आदिनाथु. कृपा करी कर्म तणी सधाडि, तउं हाकि हेला करि कर्मवाडि दारिद्रमुद्रा प्रभु वेगि छोडि, तउं आवती वारि न सील खोडि. असंख्य सेव्या मई भूमिपाल, दीठ्या सवे देस महाविसाल जोया घणा धातु तणा विवाद, लोभांधि मूक्यां सवि सा[धु?]वाद. ५ अकृत्य कीधां गणना व्यतीत, मई मंत्र साध्या भुवन प्रतीत इसे घणे कष्टि निकृष्टि थाइ, ए देहु पीडिउं न हुइ भलाइ. सौभाग्यु हुउं भुवि जीह दूरिं, न मापनउ रूपुं तिसरं सरीरि न चिंतव्या चित्ति मनोर पूगा, ते जीव जाया कुण काजि जोगा. तउं एक चिंतामणि कामुधेनु, तउं एकलउ कल्पु निमोपमानु तउं एकु रुडइ मनसौख्य पूरइ, बीजा घणा देव किमर्थं कीजइ. ८ तउं दुबळा पीहरु देवदेव, तू एकलानी कही इकु टेव बोलिउं न भावइ इम वीनवीतां, कखा(षा)य वइरी किम तई ति जीता. ९ तउं एकु दामोदरु शूलपाणि, तउं एकु सोमेश्वर राख हाणि तई एकि बोध्या विधिमार्गि बोलइ, तइ एकि पीड्या सविजीव सेवइ. १० तउं एकु आखंडलु लोकपालु, तू एक पखि भुवि आलमालु (आलवालु ?) तु आगिलउ कोइ नथी त्रिलोकि, मया करीउ तउ हिव मइं विलोकि. ११ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy