SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 54 अनुसंधान-२९ सत्तर माहेली एक अनंती सोल कला वसतार सोलकलानी ए कलामांहें परज अनन्त अपार । एक परजनी सोल कलानो सिध कह्यो निरधार ए सिध सासण सिधां हंदो आगम अगम अपार ॥४॥ सत्तर कलानो मूल अनादि एक कला तेह बुझो एक कलामां सिध अनंता तीर्थधणी तीहां जुझो । तीरथनाथ अनादिक राजा तेहनी परज अनन्त सोल कलाना सीध अनंता एक धणी माहंत ॥५॥ आदियो तीरथनाथ धणी जे मूल अनादिकवंशी आदिक सीधतणो परीवार सोलकला शिवतंसी । एम अनादिकना धणीनो सोल कला वसतार आदिक तीरथनाथ धणीना सिध अनन्त अपार ॥६॥ ए सिध सासण सिधा हंदो सिधपुर पाटण राजे रिध अनंती सिधा हंदी कोट कलानीध गाजें । एकेका सिधनी सोल कलामां सिध अनन्त अशेश एक कलामां परज अनंती सोल कला शनिवेश ॥७॥ एक परजनी सोल कला जे एक कला निरधार ए ब्रीडमें एक कलाना जीव अनन्त अपार । ए सिधसासण सिधा हंदो आगम हे वसतार भविजिन जीवसत्ता सिध वाधे सिधनगर वशतार ॥८॥ सर्व अनंती ऋध संसारे एक कलामांहें माये एक कलामांहें अनंत अनंती एहवी सोल कहाए । एहवी सोल कलानो सीध परजानो छ सोही एहवा परजना सिध. अनंता एक तीरथपत जोही ॥९॥ एक तीरथपति एक कलामां एहवी सोल विराजे एहवा सिध अनन्त अनन्ता आदि अनादिना गाजें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy