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अनुसंधान-२९
अनन्त अनन्ता सिध मिलीने तीर्थधणी, तेज चढती चढती सोल कलाना आदिक सिध सहेज । एम अनंता आदिक सीधा तेज अनन्त अपार एक अनादिक सिधकला छे सोल कला विस्तार ॥५॥ एम अनंता सिध अनादिक तेज मीले ततसोही एक धणी युग सिध अनांदिक एम अनंता तोही । ए निज सासण सोल कलाना सिध अनन्त अपार साद्य अनाद्य चढंता जोतें तेजें तेज मझार ॥६॥ अनन्त अनादिना सिध अनंता निज पर निगम शरूपें तेमांहें नाथ वडेरा बुझो त्रिहुं जुग परजा भुपिं ।
आदितणा जे सिध अपारि अनन्त अनंता आवें निजना निज रहें निरवांणे परना लोक पठावे ॥७॥ सीध अनंता परज अनंती त्रिहुविध ठाकुर राजें देख अनंता साहिब बेठा अनहद राजमें गाजें । अनादितणा जे सिध कह्या , आपण आपण भेदें तेह तणा जे तेथ हवंदा देखो निगम संवेदि ||८|| निगमें वेद कुरांण सिधान्त तेथ अच्छे त्रिहुं वेद राज अदल चले सीध हंदो अगम नगरमांहे भेद । तेथ अनंती केवलविद्या अनन्त अनंते भेदें तेह अनंतामांहेथी आवी एक कला इण वेदें ॥९॥ वेद पूरांण कुरांण सिद्धान्त तेहतणा विसतार चउद भुवनतणी जे विद्या दीशे खेल अपार । आदि आनादना सिध अनंता उजल लोक अपार निज पर सासण नगर संपूरण पन्नरमो निरधार ॥१०॥ अलख निरंजन आदि गुंसाई ध्येय नारायण धांम श्रीजिनराज भजे भगवंत साहिब केवल साम ।
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