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________________ August-2004 केवल ब्रह्म लो कुरुणानिध साहिब केवलनाथ केवल सक्त अनंती परजा खेले साहिब साथ । पांचे ज्ञांनतणो परिवार श्रुतसखी निजसंग नाथ निरोत्तम हे नवरंगो राजत हे रसरंग ॥६॥ तीरथनाथ धणी त्रिहुं लोकें मांड्यो तेथ मंडांण केवलभाषित धर्म जगाडो तेरस पार वखांणं । बारे अंगथी तेरस बुझें तेरे क्रिया तिथि साधें धन्य जीके नर नार धणीनां आगमपिं (पं) थ आराधे ॥७॥ तेरस लाधो तत्त्व निरंजन केवलज्ञांन अनंतो केवल पर्य रमे कमलापती केवलराज करंदो धन्य जीके नरनार अनंतो धर्म धडे करी ध्याव्ये (?) तेरस बुझे तेथ चढदा साहिब हंदा कावें ॥८॥ तेरस लोक में नाह ज साधें तेरस हें निरवाणं केवलभाषीत धर्म जिणंदा दाखे ते फरमाणं । केवल पंथ जती जीहां होवें धर्म शती जती जांणें मुनीचन्द्रनाथ जती जुग जालम तेरस केवल मांणे ॥९॥ इति श्रीतत्वज्ञसंजोग केवलज्ञांनपर्जेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकाशिते चैतन्यब्रह्म निजनिजस्वरूप निजनिजविद्यास्थिति अनंत अनंतार्थ माहा केवलरस प्रकाश तेरसतिथी कलाकथननन्तर अथश्री सिधतत्त्वज्ञांन चैतन्य अनंतपर्जेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथजीप्रकाशिते उपयोगज्ञांनशक्तिआराध सिधसासणस्थितिकरण माहारसवच्छल आगमआराध चतुर्दशीतिथी कलाहेतु नयज्ञांनवांणी : चालः चतुर्दश साधी आगम वाधि तेथ कीया फरमाण चउद भुवन संजोगनी बाजी संक (के) ले निरवाणं । चउदकला शशी सोह चढदा चउद भवन उजवालो आतम देश प्रदेश भरंदा जोण झलंदा टालो ॥१॥ Jain Education International 49 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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