SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ August-2004 एह दोय लीटी पूरण आगें तेहतणो विशतार पूरण मांहे लीयो परमेश्वर मांड्यो लोक संसार । आदें तकार उपायो ते मांहें त्रण्य विचार देख अकार उकार मकारे त्रपदी ते वशतार ॥३॥ राजस तत्त्व तमोगुणमांहें ब्रह्मा विष्णुमाहेसा त्रिवधा आपणी शक्त वधारे मांहें आदि जिणेश । एह मुल मंडाण को संसारनो कंद कह्यो वृक्षमुल ॐ कार तणी ए रचना बावन अक्षर स्थुल ||४|| लोक चउदतणो ए सासण मांड्यो वेद मंडाण पुरणमें प्रगट्यो परमेश्वर ए दष्टीवाद वखांण । बावन अक्षरथी बहो वाधें दृष्टिवाद अपार पुरणथी संसार वखांणां अनन्तघणो वसतार ॥५॥ चउद भवन तणी जे लीला हेक प्रमाणुंए आदि द्रष्टिवादमें सरवे दाखुं लोकतणी गत लाधें । चेतन सामी परज अनंती एक पिंड निरधार एम अनंता जीव अनंते चउद भुवन मझार ||६|| द्रष्टवादें साहिब देखें एक परजथी आदि लोकालोकतणो वसतार साहिब जांणें वादि । साहेबथी कुच्छ छांनो नांही जांणे सहु जगदीस बारमें अंगें बोहोविध भाषें बार क्रीया जुग ईश ||७|| देख विभंग त्रिभंगीरूपें परसासण परमाण द्रष्टीवाद भणें भवसागर आगमभेद मंडाण । द्रष्टिवाद जिहां भव तायो अलख अगोचर माया मुनीचन्द्रनाथ योगेश्वरजी तो कीधी केवल काया ॥८॥ इति श्री दृष्टिवाद द्वादशांगेस्वर श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकासीते दृष्टीवाद - Jain Education International 47 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy