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July-2004
उग्रसेन बेटी सगुण, राजीमती सरंग तु
नेमि वीवाहनु मेलीउ ए, माडिउ मोटउ जंग तु ॥ ३०५ ॥
उहिव रुअडउ देश ए-ढाल
लगन लेई सविचार, सार महोत्सव सवि करई ए सज्जन दीजई मान, गान मनोहर आलविइ ए ॥ ३०६ ॥ नेमिकुमर वर जान, मानव महीअलि त [व] वस्यु अ गयमर चडई कुमार, हार मुकुट सिरि मणहरु ए ||३०७ ||
चामर ढालइ चउसाल, साल सदा फूल अभिनवउ ए चालइ जान सुचंग तु, रंग हुई वली नव नवु ए ॥ ३०८ ॥
पहुतां तोरण बारि, पसुअ पोकारित तव सुणइ हे सारथि वचन विचार, एह [ - ] न सारही इम सुणइ हे ||३०९ ॥
कटरे लोग अयाण, जाण नही निय मनि इसिउं हे जीव हणिइ नही धर्म, कर्म करि जोउ इ जन इसिउं हे ॥३१०॥
सवि हुं धर्मविचार, तारण जीवदया कहइ हे रुलीया ते संसार, सारदया जे नवि लहई हे ॥ ३११ ॥
दया न जाणइ नाम, ठाम वंच्छि जे सुख तणउ ए ते नर विसआहारि, जीवअ वच्छइं आपणउ हे || ३१२ ||
अति थाओ करतां रीव, जीव छोडि सवि जिणवरू ए ए संसार असार, सार मार मथिउ सादरू अ ||३१३||
देइ संवत्सर दान, मानव सवि ऊरण करइ रेवइ गिरिवर शृंगि, रंगि संयम सिरि वरइ ए ॥३१४||
चउपन्न दिन कीअ थान, न्यान अनंतु ऊपनुं ए वसुहां विहरइ स्वामि, नामिं नवनिधि संपजइ ए ॥३१५॥
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