SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ July-2004 सिर पाखलि परदक्षिण देइ, ते आवी हरि हाथ रहेइ वलतउ तेह जे हरि मूकेइ, प्रति वासुदेव प्राण चूकेइ ||२८१|| चक्र लेइ आविरं तस सीस, पुहती यादव तणी जगीस सुरवर पुष्पवृष्टि तव करइ, बंदण जय जय उच्चरइ ॥ २८२ ॥ वासुदेव नवमउ ए सही, हरखी सुर जाइ इम कही सात रयण ऊपना जिसई, त्रिणि खंड हरि साधइ तिसई ॥२८३॥ देव असुर नवि लोपइ आण, कोडि सिलाधर अधिक पराण सोलि सहस नृप मुकुट धरंति, वासुदेव उलग सारंति ॥ २८४॥ उमावइ गोरी गंधारि अनइ सुसीमा लक्षण नारि सत्यभामा रुक्मणि जंबुवइ, आठि अग्रमहिषी हरि हवइ || २८५ ॥ एवं सहस छत्रीसइ नारि, वासुदेव परणइ सुविचार सांब पजून प्रमुख सुत सार, अऊठ कोडि दुर्दैत कुमार || २८६ ॥ द्वारिकानगरी नव नव रंग, वासुदेव नवमउ अति चंग महामहोत्सव अतिहि उदार, दिनि दिनि यादव जयजयकार ॥२८७॥ जिम जिम वाधई ते कुमर ए-ढाल हिव निरूपम गुण नेमि जिण, समुद्रविजय सुत सार तुं नगर माहि रामति रमइ ए, मेल्हइ राग विकार तुं ॥२८८॥ एक वार भमतुं गयु ए, हरिनी आयुध शाल सधर धनुष सारंग तिहां, चाडावर चउसाल तु ॥ २८९ ॥ गदाचक्र हथीआर सवे, शम्मी मेल्हा नेमि वासुदेव विण कहिं नरिं, न चलई निश्चइ खेम तु ॥ २९०॥ शंखनाद जव पूरीउ ए, थरहरीउ ब्रह्मांड अचल चलइ गिरिवरसिहर, त्रासइ अति बलवंत ॥ २९९ ॥ नाद सुणि नारायणि ए, चंता कीधी चिंतिउ इंद्र किसिउं ए अवतरिउ ए ए नही रूअडी रीति तु ॥ २९२ ॥ Jain Education International 83 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520528
Book TitleAnusandhan 2004 07 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy