________________
July-2004
81
छडे पीआणे कटक अपार, पहंतु सोरठ देस मझारि ते जाणी यादव गहगहइ, वैरि पराक्रम नवि सांसहई ॥२५७।। कृष्ण राम नेमीसर नाथ, समुद्रविजय वसुदेवह साथ यादव तणी मिलइ कुल कोडि, दसई दसार सबा(ब)ल नही खोडि
॥२५८॥ साम्हा आवी मंडई झूझ, घणा दि वदतुं प्रगटइ गूझ गयमर कु(कुं)भि करइं एक घाउ, एक वयरी सिरिपर परठिई पाउ
॥२५९॥ कोपि मस्तक विण एक भिडई, झूझंता धरणि तलि पडइं एक भड ऊडइ मोडी मूझ, मयगलनां छेदइ सिरि पूछ ॥२६॥ नागपाश बधई बल बंड, इक त्रोडि नाखइं शतखंड घाय तणउं तिहां न पडई चूक, भड भाजीनइं कीजई चूक ॥२६१॥ यादव अति दीसइ झूझार, जरासिंध तव करीय विचार मेल्ही जरा यादवदल माहि, सुभट सवे छंडाव्या आहि ॥२६२।। यादव कटकि जरा विस्तरी, ततखिणी सुभट पड्या थरहरी इकि वयण भरि छांडइ चीस, कर कंपावई धूणइ सीस ॥२६३॥ धरणि पड्या मुहि मूकई लाल, बोल न बोलइ जाणे बाल विगति न नाण निसिनइ दीस, हयगयनी नवि सुणीइ हीस ॥२६४।। नेमिनाथ नारायण विना, सुभट सहु नाठी चेतना चिंतातुर माधव मन माहि, इहां कहीनी नवि लागइ आहि ॥२६५।। सिउं होसई पूछई जिनराय, नेमिसरि तव कहिउ उपाय पायालि छई प्रतिमा पास, ते.सुर नरनी पूरई आस ॥२६६॥ तेहना पगर्नु आवइ नीर, तुं सवि हुइ निराकुल वीर ते किम आवइ हरि नवि लहइ, वलतु नेमीसर इम कहइ ॥२६७॥ अट्ठम तप करि तुं गोविंद, तप महिमा आवइ धरणिंद अवधिज्ञान करी जाणिसिइ, ते सुर पगथी धोअण आणसइ ॥२६८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org