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अनुसंधान-२८
धनुष सार सारंग मुट्ठय यमुना द्रह जो नाथसिइ कालीनाग महंत गर्भ सातमुं देवकी, ते तुझ करसई अंत ॥२०१।।
चउपइ अश्व वृषभ मेल्हिय, वन माहि, मल्लं बिहूनी अधिकी आहि शस(शस्त्र) अभ्यास करइं ते दोइ, नगर माहि नवि जीपइ कोइ ॥२०२॥ राम सहित केसव वनमाहि, भमइ रमतां माहोमाहि अरिट्ठ अश्वनइ वृषभ महंत, हरि देखी धाइ दुर्दत ॥२०३।। केशव कोपि मुष्टि प्रहारि, बे पुहचाड्या यम घरिबारि रमलिइं हिव आंघो संचरइ, यमुनाजल माहि क्रीडा करइ ॥२०४।। तेह माहि द्रह एक अताग, सहस फणुं त्तिहां काली नाग लोक भयंकर अति विकराल, नारायणि नाथ्यु ततकाल ॥२०५।। ते स्वरूप कंसिं सुणी, नीय वयरी जाणेवा भणी सत्यभामा छइं भगिनी सार, रवितलि रूपी अतिहिं उदार ॥२०६॥ यौवन वेस कला अभिराम, मयण राय लीला आराम सयंवरा तस मंडिउं जंग, आपीउं धनुष तिहां सारंग ॥२०७॥ नगर माहि जाणावी वात, मल्ल बिहुं मु करी उपधात सारंग धनुष चडावइ जेअ, सत्यभामा सही परणई तेअ ॥२०८।। सुणीअ वात गोकुल माहि जिसिइ, नगर माहि बे आव्या तिसिइ वासुदेव साथई बलदेव, बिह्नई कंस सई बोलइ हे ॥२०९।। तेडउ मल्ल जे च्छइ बलवंत, तेहसिउं झूझ करउ एकांत कंस हसी बोलइ गोवाल, तुम्हे पहरा जाउ बिहू बाल ॥२१०॥ गिरिवर सिखर चलइ जिम वाय, आंकतूल किम मंडइ छाइ जेह सिउ सुभट न मंडइ पाग, तिहां तुम्हारउं केहउं लाग ॥२११॥ तिहां आविउ वसुदेव कुमार, नगर लोक सहूइ परिवार मन माहि शंकइ वसुदेव, राम कृष्ण सिउं करसिइ हेव ॥२१२।।
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