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अनुसंधान-२८
एहवी गुरुवाणी सुणी, हिअडइ हरखि राउ नगर माहि आवइ सहू, सहिगुरु प्रणमी पाय ॥३८॥ समुद्रविजय बंधव सहित, करतुं पुण्यह काज राजनीति संभारतुं, पालइ पुहवी राज ॥३९॥
चउपई हिव मथुरानगरीनु राय, उग्रसेन नामि बोलाइ एकवार रइवाडी जाइ, वनमाहि दीठउ तापसराय ॥४०॥ मासखमण करइ ते सदा, नगरमाहि न रहइ ए कदा एक जि घरनी भिख्या(क्षा)लीइ, बीजइ घरि वली पग नवि दीइ ॥४१॥ राइ तें आमंत्रण कीध, घरि आविउ, भिक्षा नवि लीध अणबोलाविउ पाछउ वलिउ, निय आखडी थिकु नवि चलिउ ॥४२॥ मासखमणनउ तप उचरइ, वली राजा आमंत्रण करइ राय घरि भिक्षा न दीइ कोई, तप उचरी रहइ वनि सोइ ॥४३।। त्रीजीवार थयउं ते जाम, तापस कोपि चडीउ ताम एहनइ दुक्ख तणउ देणहार हुं घा(खा)झिउ (?)जउ तप हुइ सार ।।४४।। रीसइ एह नीआणुं करइ, नीय आउखुं पूरे करइ उग्रसेननइ गुणधारणी, पटराणी नामि धारणी ॥४५॥ तास उअरि तापस उपन्न, अधम डोहला मइलउ मन्न जाणइ पाप सवे आचरुं, रायमांसनुं भक्षण करुं ॥४६।। बुद्धि डोहलउं पूरुं कीउ, अशुभ दिवसि सुत ते जनमीउ कांसानी तव पेई करी, माहे सोवन्न रतने भरी ॥४७॥ मथुरानगरी उग्रसेन राय, पिता एहनुं धारणिमाइ इम लिखीनइ चीठी करइ, ततखिणी पेई मांहि धरी ॥४८॥ पुत्र सहित यमुना नय माहि, मेल्ही पेई गई प्रवाहि छोरु शुद्धि रायानई कही, बेटी जाइ जीवी नही ॥४९॥
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