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________________ 86 अनुसंधान-२७ श्रीमुनीश्वरसूरि कृत 'प्रमाणसारः' प्राचीन वादकळाना अभ्यासीओ माटे रसथाळ समी रचना छे. वादि-प्रतिवादी सामसामा बेठा होय एकबीजाना पक्षने छिन्नभिन्न करवा माटे वाग्बाण छोडता होय एवं दृश्य आ वांचतां ऊपसे. सम्पादके नोंध्युं छे : 'ग्रन्थकार खण्डनना लडायक मिजाजमां ज होवानुं जणाइ आवे छे.' एम ज छे. सम्पादके एम पण नोंध्युं छे के '... पूर्वापरनो सम्बन्ध जळवाय छे के केम तेनी चिन्ता राख्या विना ज तेओ निरूपता जाय छे...' परंतु एवं नथी, ग्रन्थकारे पूर्वापरनो सम्बन्ध अने विषयसंकलन बराबर जाळव्यां छे, एम निरांते तपासतां जणाय छे. कर्ता प्रतिवादी बनीने बोली रह्या छे, एमनी सामे पूर्वपक्ष तरीके छ ये छ दर्शनो छे, तेथी विचारबिन्दुओ बहु शीघ्र बदलाय छे. वादविवादनी तडाफडीनी साथे धाराबद्ध वाक्प्रवाहमां प्रासो फूलझडीनी जेम वरसे छे. संस्कृत पर केवू प्रभुत्व ए काळे विद्वानो केळवता हता तेनां नमूना आमां पुष्कळ छे. आक्षेप, कटाक्ष, व्यंग, मर्म, विनोद द्वारा वाद केवो रसिक बनी रहेतो ते पण आमां तादृश थाय छे. पृ. २४ परना श्लोकना चोथा चरणमां 'मानसिद्धिश्च' एटला शब्दो लेखक दोषथी प्रवेशी गयानुं मानवामां हरकत नथी. पृ. २७ पर 'निर्विशेष०' ए श्लोक, त्रीजुं चरण 'सामान्यरहितत्वेन' होवू जोइए. पृ. ३८ पर 'ईश्वर' ए श्लोकना त्रीजा चरणमां 'अन्यो' छे त्यां साचो पाठ 'अज्ञो' छे, जे अन्य ग्रंथोमां जोवा मळे छे. 'राणभूमीशवंशप्रकाशः' राजस्थानना राणावंशनी नामावली रजू करे छे. सम्पादके कर्ता महो. मेघविजयजीना जीवनकालनो निर्देश नथी कर्यो. ऐतिहासिक व्यक्तिनामोनी साथे ज-भले कौंसमां - तेमना सत्तासमयनो निर्देश संशोधनात्मक लेखोमां आपवानी परिपाटी छे. प्रौढ कवित्वथी अलंकृत एवी आ रचना जैन मुनिओनी गीर्वाणवाणी सेवानी साथे इतिहास आदि विषयोनी सेवानां दर्शन करावी जाय छे. 'चतुर्विंशतिजिनस्तवनम्' काव्यरस-भक्तिरस- पूर्ण एक अभ्यासयोग्य कृति छे. छन्दःशास्त्रोमां वसन्ततिलका छन्दनुं बीजं नाम 'सिंहोद्धता' छे ए आ कृतिमां ज पहेलीवार जाणवा मळ्युं. आ नामने शोभे एवी बलवान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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