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________________ 40 महिमनगर कइ सामहीइ, पंडित प्रबल प्रधान रे । रंगकुशल आवी नमइ, श्रीगुरु दिइ बहुमान रे ॥ ७० ॥ प० ॥ षोजो बहु षजमति करइ, लाभ घणा गुरु पावइ रे । गुरुजी श्रीसंघ महिमकु, नगर समाणइ आवइ रे ॥ ७० ॥ प० ॥ अतिआणंद तिहां हुउ, सांहमो साह कल्याण रे । लाहोरथी आवइ रंगस्युं, श्रावक अतिहिं सुजाण रे ॥७२॥ प० ॥ प्रघल चित्त वित्त वावतु, श्रीगुरुकुं पधरावइ रे । खानपुरइ श्रीलाहोरकइ, सांहमो श्रीसंघ आवइ रे ||७३ ||०|| दूहा ॥ श्रीगुरु सांभली आवतां, नरनारीना वृंद | थोके थोके मिली घणा, आवइ अति आनंद ॥७४॥ ढाल ॥ राग- धन्यासी ॥ श्रीसंघ सांहमो ए आवइ, वाघा आछा बणावइ खासा मुलमुल साही, महिमुंदी अतलस लाई ॥७५॥ अनुसंधान - २७ खीरोदक खेस खांतीला, श्रावक सोहइ रंगीला । जडित कटिं कट दोर, देखी जलइ कुंमति कठोर ॥७६॥ चूआ चंदन अंगि लावइ, आछी मुद्रिका फावइ । कठिन कनकीए माला, हरखई हेज मुछाला ॥७७॥ केइ चडई वडे हाथी, वेगइं बोलावए साथी । सुखासन तुरी चकडोल, रथिं चडइ रंगरोल ॥७८॥ आवइ श्रावक सहु भेला, खरचणकी एही वेला । वरसइ कंचनधार, बंदी बोलइ जयकार ॥७९॥ सेषजी साथि साहीजादा, करइ ते बहुत दिवाजा । खान मुलक सांहमा आवइ, राय रांणा तिहां फावइ ॥८०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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