SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ March-2004 33 कल्याणकुशलपंडित जयउ, सकल पंडित सरि लीह । दयाकुशल तसु पय नमी, सफल करइ निज जीह ॥८॥ चउपई ॥ विनय विवेक विचार सुजाति, कहीइ देस चतुर गूजराति । तिहां रायधनपुर नयर प्रसिद्ध, लोक वसई पुन्यवंत समृद्धि ॥९॥ तिहां गुरु गुणवंत करइ चउमासि, पूरइ भविजन केरी आस । श्रीगुरु हीर जेसंगजी वली, दूधमांहिं जिम शाकर भली ॥१०॥ तिहां सोहइ गुरु-गुरु की जोडि, मंगल महानंद होवइ कोडि । आवइ निति निति श्री संघ थोक, श्रीगुरुतेजि सुखी सहु लोक ॥११॥ दूहा ॥ अवसरि इणइ अति बली, अकबर साह सुलतान । श्रीगुरु रंगि बोलावीआ, ते सुणो भविक सुजान ॥१२॥ ___ढाल || राग देशाख । अतिहठी अकबरसाहि कहावइ, दूजो दुनिभई उपम कोई नावइ । कोउ नाहीं अकबर बलि पूजइ, नाम सुणत वयरी तन धूजइ । दूरि कीआ वयरी मद मोड, विषम लीउ जेणई कोट चितोड । कुंभलमेर अजमेर समाणो, जोधपुर जेसलमेर जाणो ॥१३॥ जुंनो गढ लीउ सूरति कोट, भरूअचिकोट लीउ एकदोट । मांडवगढ लीउ बल मांडी, हाडा गया रणथंभर छांडी ॥१४॥ लीउ शीआलकोटि रोहीतास, अनेक विषमगढ पार न जास । सो लीआ अकबर एक निशाण, हवइ सुणो देसनां नाम सुजाण ॥१५॥ ___ढाल ॥ राग गोडी ॥ गोड बंगाल तिलंग वंग अंग घोडा घाट दुलखोडीसु खंधारदेस जाकी विसमी वाट । कामरु कमता बलष देस परवत सवालाख मगध कासी कास्मीर देस तिहां झाझी दाख ॥१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy