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March-2004
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कल्पव्याख्यानमांडणी ॥ भूमिका
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
जैन मुनिनी व्याख्यान-पद्धति एक रसप्रद विषय बने तेम छे. 'व्याख्यान' माटे मूल प्रयोजातो शब्द छे 'देशना'. श्रोताओना समूहने अपातो धर्म-उपदेश ते 'देशना'. 'व्याख्यान' एटले जिनभगवानना कहेला तथा गणधरोए रचेला सिद्धान्त-सूत्रोनी व्याख्या-विवरण. कालान्तरे सूत्र बोलतां जईने तेनो अर्थ, विविध सन्दर्भो टांकतां टांकतां, समजाववानी क्रियाने 'व्याख्यान'ना नामे ओळखवामां आवी. सारांश ए के जे प्रतिपादनमां सूत्र के शास्त्रनां वचनोनो आधार होय, अने ते वचनोना शब्दे शब्दना अर्थोद्धाटन के विवरण माटे, लोकभोग्य बने ते रीते पण, अनेक विभिन्न शास्त्रो तथा सन्दर्भोनो टेको लेवातो होय, अने ते प्रकारे शास्त्रना पदार्थो तथा धर्मनी वातो लोकहृदय सुधी पहोंचाडवामां-ठसाववामां आवती होय, तेनुं नाम व्याख्यान.
व्याख्यानमां मूळ सूत्र मुख्यत्वे प्राकृत-मागधी भाषामां बोलातुं. समर्थन माटे टांकवामां आवतां अवतरणो संस्कृत-प्राकृत आदि भाषानां रहेतां. अने तेनुं विवरण-विवेचन जे ते समयमां तथा स्थळमां प्रचलित लोक भाषामां - दा.त. गुजराती, अपभ्रंश वगेरेमां - थतुं.
मध्यकाल अथवा उत्तर मध्यकालमां, आ व्याख्यान पद्धतिने वर्णवनारी अनेक प्रतिओ लखायेली मळी आवे छे. 'सूत्र व्याख्यानपद्धति', 'मध्याह्न व्याख्यानपद्धति' वगेरे नामे ते उपलब्ध होय छे. ते प्रतिओनुं अवलोकनअध्ययन करतां, मध्य युगमां जैन मुनिओ केवी रीते व्याख्यान आपतां हशे तेनो अंदाज अवश्य मळी आवे छे.
अहीं ए प्रकारनी ज एक नानकडी कृति प्रस्तुत थाय छे : 'कल्पव्याख्यान-मांडणी'. भादरवा महिनामां, चातुर्मास रहेला मुनिओए, 'कल्पसूत्र'नुं वांचन करवानुं अनिवार्यपणे आवश्यक कृत्यरूप छे. हवे ते सूत्र गृहस्थ श्रोताओने अर्थ साथे संभळाववानुं होय छे, एटले श्रोताओने रस पडे अने
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