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________________ अनुसंधान-२७ अपनी यह अभिलाषा उसने पिता के सामने प्रकट भी की, पर जब उधर से उसे प्रोत्साहन न मिला तो वह नोहर में जाकर रहने लगा, जहां अवसर पाकर उसने वि० सं० १७८९ चैत्र वदि ८ ( ई० स० १७३३ ता० २६ फरवरी) को आधीरात के समय खवास आनन्दराम को मरवा डाला । जब सुजानसिंह को इस अपकृत्य की सूचना मिली तो वह अपने पुत्र से अप्रसन्न रहने लगा । इस पर जोरावरसिंह ऊदासर जा रहा । जब प्रतिष्ठित मनुष्योंने महाराजा सुजानसिंह को समझाया कि जो हो गया सो हो गया, अब आप कुंवर को बुला लें । इस पर सुजानसिंह ने कुंवर की माता देरावरी तथा सीसोदणी राणी को ऊदासर भेजकर जोरावरसिंह को बीकानेर बुलवा लिया और कुछ दिनों बाद सारा राज्य कार्य उसे ही सौंप दिया । (पृष्ठ ३००) इसी इतिहास के अनुसार तीनों राजाओं का कार्यकाल इस प्रकार 4 है : १. महाराजा अनूपसिंह जन्म १६९५, गद्दी १७२६, मृत्यु १७५५ २. महाराजा सुजानसिंह जन्म १७४७, गद्दी १७५७, मृत्यु १७९२ ३. महाराजा जोरावरसिंह जन्म १७६९, गद्दी १७९२, ओझाजी ने आनन्दराम को महाराजा अनूपसिंह का कार्यकर्ता नाजर, तो कहीं महाराजा अनूपसिंह का मुसाहिब माना है । महाराजा सुजानसिंह के समय प्रधान माना है और उनको एक स्थान पर कूटनीतिज्ञ और खवास भी कहा है । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि तीनों महाराजाओं के सेवाकाल में रहते हुए वह मुसाहिब और कूटनीतिज्ञ तो था ही । पत्र का सांराश : लघु नाटिका के अनुकरण पर षड्भाषा में यह पत्र रूपचन्द्र गणि ने बेनातट आश्रम ( बिलाडा के उपाश्रय) से लिखा है । देवसभा में इन्द्रादि देवों की उपस्थिति में सरस्वती इस नाटिका को प्रारम्भ करती है । मर्त्यलोक का परिभ्रमण कर आये बृहस्पति आदि देव सभा में प्रवेश करते है और मृत्यु लोक का वर्णन करते हुए मरु- मण्डल के विक्रमपुर / बीकानेर की शोभा का वर्णन करते है । साथ ही सूर्यवंशी महाराजा अनूपसिंह, महाराजा सुजाणसिंह और युवराज जोरावरसिंह के शौर्य और धार्मिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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