SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० अनुसंधान-२६ वाला घर आवज्यो, माहरा जीवन जादवराया, वार म लावज्यो वली जे होय वेधक जोण, तस संभलावज्यो, वली जे होय चतुर सुजाण, तेहनें जणावज्यो ॥२॥ आंकणी खेमकूसल वरते ईहां, वली जपतां प्रभुजी- नाम रे साहिबजी सुख शाता तणो, मुंने लखज्यो लेख अनांम ॥३॥ साव सोवन कागल करूं, वाला अक्षर रेण रचंत रे मणी मांणीक लेखण जडु, हुं तो प्रीउगुण प्रेम लखंत ॥४॥ वा० तोरणथी पाछा वळ्या, तेहनें कागल लखुं केही रीत रे पण नवी रहे मन माहरु पण साले पूरण प्रीत ॥५ वा० ॥ दिवस जिम तिम निगमुं, वाह्ला रयणी वरस हजार रे जो होवे मन मलवा तणो, तो वहिली करज्यो सार ॥६ वा० ॥ नवयोवन प्रीउ घर महिं, वाह्ला वसवू ते दुरिजन पास रे बोलें बोलें रे दाखवे, वाहला उंडी मरम वीश्वास ॥७ वा० ॥ सहू को रमेरे नीज मालीये, वाहला कामनी कंतसु हेज रे थर थर ध्रुजे मुझ देहडी, वाह्ला माहरी सुनी सेज विसेस ॥ ८ वा० ॥ वीती हसे ते जाणस्ये, वाहला विरहनी वेदन पूर रे चतुर चित्तमां समझसे, स्युं जाणे मूरख भूर ॥९ वा०॥ पतंग रंग दीसे भलो, वाहला न ष(ख)मे तावड रीठ रे फाटे पण फीटे नहें, हुं तो वारी चोलमजीठ ॥१० वा० ॥ उत्तम जनसुं प्रीतडी, जिम जलमां ते तेलनी धाररे त्रीजा पोहोरनी छांहडी, ते तो वड जिम विस्तार ॥११ वा०॥ दूर थकी पण सांभली, तिणे मन मलवा तणो थाय रे वालेसरू मुझ विनती, जिहां तिहां कही न जाय रे ॥१२ वा० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520526
Book TitleAnusandhan 2003 12 SrNo 26
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy