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श्रीमुनिचंद्रसूरि गुरुगुण गहुंली ॥
अथ गुंहलि लिख्यते ॥
( बेनी अपापानयरी उद्यान के वाजा वाजियारे लोल ॥ ए देसी ॥1)
बेनी चालो गुरु-गुण गावा के हर्ष हीयें घणो रे लोल || बेनी पाटण नयर मोझार । के विचरंता वली रे लोल ||१|| बेनी पधार्या गुरुराय के, वर पटोधरु रे लोल । बेनी गुण छत्रीसना धार, के तपगच्छपति रे लोल ||२|| बेनी सित्तेरमो ए पाट के परंपरा गणी रे लोल । बेनी श्री मुनिचंद्रसूरीस के, लघु वय पद लह्युं रे लोल ||३|| बेनी मरुधर नामे देश के, गाम चांपासणी रे लोल । बेनी उत्तमकुले उतपन्न के, भीखाजी पिता रे लोल ||४|| बेनी माता धापुनाम के; कुखे अवतर्या रे लोल बेनी पूरव पुन्यं संजोग के, प्रगट्यो लघु वये रे लोल ॥५॥ बेनी गीतारथें करी सोध के, ततक्षण ते मल्या रे लोल । बेनी देखी भाग्य विशाल के, शांत दांत मुद्रा भणी रे लोल ॥६॥ बेनी राजेन्द्रसूरीजीरा शिष्य के गुण रयणे भर्या रे लोल । बेनी मुखकज तेहनो देखी; के मन विकसे घणो रे लोल ॥७॥ बेनी लाव्या खम्भातनयर के, महेन्द्रविजयगणी रे लोल । बेनी त्यांथि पूना नयर कें, जाये सहु मल्या रे लोल ॥८॥ बेनी पूना केरो संघ के, मलि बहु एकठो रे लोल । बेनी देस - विदेसे लखाय के, कंकुपत्रिका रे लोल ॥९॥
बेनी उत्सवनो बहु ठाठ के, न जाये कह्यो रे लोल । बेनी विक्रम संवत जाण के; ओगणी- ओगणसायठो रे लोल ॥ १०॥
बेनी मास वैशाखना जाण के, बेनी सुभ वृष लग्ने दीक्षा के;
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अनुसंधान- २५
अक्षय [तृतीया ] तिथी रे लोल । सींहपद लह्यो रे लोल ॥ ११ ॥
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