________________
June-2003
85
संगति एहनई हूती रूडी पुण नवि प्रीछउ सार विचार । कर्म निकाचित जेहनइ पोतइ ते प्रतिबोध न लहइ लगार ।२४। तिम गु. । दृष्टिरागि नर जे हुइ रातउ जे हुइ द्वेषी अति घणघोर मूढ वचन परमारथ न लहइ विग्रहइ पाड्यउ वेदइ कठोर ।२५। तिम गुरु. । ए चिहुनिइं धरम कहिवा बिसइ ते नवि जाणइ आगम रीति । कूकर वदनि कपूर जि घालइ ते डाहपणूं न धरइ चीति ।२६। तिम गुरु. । लोहवणिक जिम करइ कदाग्रह सूत्र न साचूं प्रीछइ जेह । लोक प्रवाहइं मूंड मेलावइ राचइ धर्म न जाणइ तेह ।२७। तिम. । भारीकर्म घणानीं ए परिं हलूकर्मी प्रीछइ ततकाल । संनुतकुमार चिलाती नंदन थावच्चासुत गयसुकुमाल ।२८। तिम गुरु व. । परिषद पुरुष जोइनई कहिवउ । धर्म काउ इम आचारंगि नंदीसूत्रि ए साखि सकारी । श्रीब्रह्म कहइ जोड्यो मनरंगि ।२९।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org