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________________ June-2003 थाप्यो अवगत वाद विशेष आषाढाचारज सुर देखि । बिसइ - पनर वरसे (२१५) थूलभद्र शील प्रमाणि लहइ बहु भद्र ॥९॥ 57 अरथ थकी पूरव जे च्यार गयां विछेद तेथी निरधार । वरस बिसइ - वीसे (२२०) अवधारि चोथा निह्नव थयु विचारि ||१०|| थाप्यो शून्यवाद तिणि जाणि समुच्छेदनुं सुणी वखाण । वरिस बिसई - अठावीस (२२८) थयां महावीरनई मुगतिं गया ॥ ११॥ पंचम निह्नव थयु इक समइ बि किरिया तेह न इम निगमइ । वीर थकी त्रिणसई - पांत्रीस (३३५) वरसि थयु कालिक सूरीस ||१२|| अविनयवंत सीस परिहरी ग्यओ ऊजेणीपुरि नीसरी । निगोदनो जेणइ कह्यओ विचार हरि फेरव्यउं वसतिनुं बार ||१३|| वरस च्यारसइं-त्रिपन ( ४५३) माण बीजो कालिकसूरि सुजाण । बहिनि सरस्वति वाली जेणि गर्दभिल्ल उच्छेदिओ तेणि ॥१४॥ चिहुं सय सत्तर ( ४७०) विक्रमराय थयु ऊजेणी नयरी ठाय । सिद्धसेन गुरि श्रावक कीध महाप्रभावकनो जस लीध ॥१५॥ वरिस पांचसई चिउंआलीस (५४४) निह्नव छठो जाणि जगीस । जीव अजीव अनइ नोजीव राशि त्रिण्य तिणि कही सदीव ॥ १६ ॥ गुरि समझाव्यो पणि नवि वल्यओ आपमती अभिमानि बल्यओ । वरस चउरासी नइ पांचसइ (५८४) वयरस्वामि सुरलोकिं वसइ ||१७|| वीर थकी वरसे पांचसई चउरासी अधिके (५८४) वली तिसई । निह्नव जाणि थयु सातमो गोष्ठामाहिल ते महातमो ॥१८॥ तेणि थाप्यो ए मत वली जीव कर्मयोगि जो (कर्म जोगो) जिम कांचली । अप्रमाण थाप्यां पचखाण जावजीवनउं लोपी ठाण ॥१९॥ वरिस छसइं श्रीवीरजिनथकी नव अधिके (६०९) जाणो ए थकी । खमणा नामि दिगंबर थया सहसमल्ल पायक थापिया ||२०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520524
Book TitleAnusandhan 2003 06 SrNo 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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