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अनुसंधान-२४ पुहविं कीजइ पर उपगार, साधुहंस कहइ तरीइ संसार । एह वयण मनमां आणस्यइ, ते सास्वतां सुख पामस्यइ ॥१२॥
॥ इति हितशिक्षाबोल-सज्झाय ॥
(६) हेमविजय विरचित - समता-सज्झाय सहि गुरुचरण नमी करीजी समरी सरसति माय । समतारस-सर हंसलाजी वंदी तिम ऋषिराय ॥१॥
सोभागी करी समता स्युं रंग । जो तुझनइ कीधओ रुचइजी मुगतिवधूनओ संग ॥२॥ सोभागी०॥ परिहरि निंदा पारकीजी म करिसि निज गुण ख्याति । इणि परि गिरुयडि पामीइजी एहवी वात विख्यात ॥३॥ सो०॥ निज गुण निज मुख जे लवइ जी निभ परनिंदा ढाल । तस तप जप संयम मुधाजी बोलि उपदेशमाल ||४|| सो०॥ नवि लीजइ अछता छताजी पर अवगुण लव लेस । लेतां जस नवि पामीइजी तेहस्युं वयर निवेस ॥५॥ सो०॥ मासखमणनइ पारणिजी एक सीथ लइ आहार । करतो निंदा नवि त्यजिजी तस दुरगति निरधार ॥६॥ सो०॥ जो दीठा जो सांभल्याजी त्यजि पर अवगुण जाण । पर अवगुण लेतां हुइजी निज गुण केरी हाणि ॥७॥ सो०॥ पुंठिमांस नवि खाईइजी ए दुरगतिनुं बार । दशवैकालिकमाहिं कहीजी शय्यंभव गणधार ॥८॥ सो०॥ जो जस जोईइ निरमलोजी परिहरि निंदा ढाल । निंदकनइ सहुइ कहिजी ए चोथो चंडाल ॥९॥ सो०॥
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