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________________ 48 अनुसंधान - २४ नयने मुंकइ पणि नवि सूकइ कामिनी रे, पणछ विना ते बाण | नामि अबला पणि सबला तई सांकल्या रे, एणीइं राणोराणि ॥५॥ भो०|| आलस अंगि अनि उत्संगि अंगना रे, किहां तेहनइं जिननाम | आ (अं? )गि खोडा अनि वलि बेडी पग पडी रे, ते पामि किम गाम ॥६॥ भो० ॥ नारि निहाली तुझन बाली मुंकस्यइ रे, परतखि अगनिनी झाल । तृपति न पामइ आप दांमइ भामिनी रे, परिणाम विकराल ॥७॥ भो०|| निरखी रूपवतीनइ परतखि पांतर्यो रे, तरं न कर्यो सुविचार | रुधिर मांस अंतर मल मूंतर स्युं भरी रे, नारी नरगनुं बार ||८|| भो० ॥ कांने करी नइ केसरि आणइ आंगणइ रे, उपन्नि निज काज । धबकइ धूजइ आई रे झूझइ कूतरा रे, हुं बिहुं अबला आज || ९ ||भो० || प्रेमतणउं जे भाजन साजन तेहनइ रे, अणपहुचंतइ आस । मुंकइ हाकी अनि वली वांकी बोलती रे, जा रे जा तुं दास ॥१०॥ भो० ॥ राय प्रदेशी सूरिकंताइ हण्यो रे, जे जीवन आधार । पगस्यउं सायर रयणायर जे ऊतरि रे, पणि एह न पामइ पार || ११ | भो० || जोज्यो निज अंगज हणवानइ कर्यो रे, चुलणीइ बहु मर्म राती माती वनिता ते न विचितवइ रे, करतां काई कुकर्म ॥ १२ ॥ भो० ॥ इंद चंद असुरिंद अनि नागिंदनइ रे, वाह्या वली बलवंत । त्यजिन प्राणी एहवी जाणी कामिनी रे, गुण लीजइ गुणवंत || १३ | भो० ॥ माया करस्यइ नारी हरस्यइ भोलवी रे, शील रयण जे सार । एह संघातइ म करिसि वातइ पणि घणउं रे, जिम पामइ जयकार | १४ भो० ॥ । भाई निरखो सुरपति सरिखो राखीओ रे, छांनोमनी रूप सुख ना हुंसी तुम्हनइ मुंसी मुंकस्यइ रे, एह मनोभव भूप || १५ | भो० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520524
Book TitleAnusandhan 2003 06 SrNo 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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