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June-2003
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जूटक : उछारि अंवरा संघपती सब बीनती गुरुपि कहि
सो वचन मांनी परम ध्यांनी रीदय भीतरि गहिगहि ॥२॥ अनेक उछव रंग वाधि साज बहू सेजवालीआं
माफा सो घोडे विहिलि नव नव कोरनी बहूजालीआ ॥३॥ चालि : हय गय बहुले बहू असवारा, पाइक पाला संघ न पारा ।
श्रावक श्रावी कोडि ऊदारा, जांणू के आया सब संसारा ||४|| त्रूटक : संसार सब मिली कर चालइ सेस भारइं(?) हिंडोल ए ।
अनेक बंदी भाट गंद्रव देव गुरु गुण बोल ए ॥५॥ अनेक मूनीपती तास छत्रपति हीरजी च्यंतामणी
वरविमल वाचक पंडिता गुण पुरगो (?) हि(ही)र वडा गुणी ॥६|| चालि : भल समीआणे बडे बडे, डेरे खडे सो कोने रे ।
देखत दूरगति टारै फेरे, जांणू धर्म कि पर्बत वेरे ॥७॥ त्रूटक : परबत वेरे पून्य केरे वाडि आडि करि दूखां
अनेक तंबू उर सराचे(?) तोरणां सो नवलखां ||८|| पालखी डोली छत्र चामर सीकरी सो सोभकू
झंडाल नेजा रसणि..... जा भकू ॥९॥ चालि : इसे संघपती साज बहू कीआ, धरम के कारणि आसन बहू दीआ। इसी करणी धरणी मिलिआ, मुगतितरु के फल यु करी लीआ
॥१०॥ जूटक : यु लीए फल बहु मूगति केरे भलेरे कारिज करि
-रत आवि अचल दीठु बहूरि दीसि तेह परि ॥११॥ अभीनवा साहामी भक्ति भोजिन लाहण रूपा हेमकी
चिहुं पासि मंगल वाद वाधि वदि वाणी खेम की ॥१२॥ चालि : हीर गुरखी(की?) त्रिभूवनि रेहा, जिनशासनकी टारी खेहा ।
संब(घ)दूख [छां?] डी मंड्या नेहा, जांणूं वूठा अमीसो मेहा ॥१३।।
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