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________________ June-2003 तस नायक नवल निरंदा, श्रीहीरविजयसूरिंदा । सौ वेचइ धर्मक्रयाणा, ताथइ नायक लाभ सुजाणा ||६|| वसलाभ प्रगुट जगि जाणइ, तेहनि शंकर वलीअ वखाणि । नागर पवित्र सुकीना, तीहां आवइ हीर नगीना ||७|| सो वात वइराटि सु जाणी, सा. इंद्रराज गुणखाणी । सो करहि विमल प्रासादा, वडा शिखरबंध गिरिवादा ॥८॥ गुर आइ प्रतिष्टा कीजइ, हम लछिका लाहा लीजइ । हम लिख लेख शिरनामी, पाउधारु जगत्रगुरु स्वामी ||९|| तव पासइ वाचकइंदा, श्रीकल्याणविजय मुनिचंदा | वइराटि प्रासाद उतंगा, जाइ करु प्रतिष्टा रंगा ॥१०॥ गुरवचन सु सीस चढावइ, वाचक वइराटि आवइ । तब करि नगर श्रृंगारा, सो वरसई हेमकी धारा ॥ ११ ॥ दोइ कोडि द्राम सुविलासा, इम वाचक बहु जस पावि, इंद्रराजकी पुहुचइ आसा । कल्याणविजय मनि भावइ ॥१२॥ श्रीहीरकुं उपम दीजि । नित काज वडे इम कीजइ, सीरोही टांडा आवइ, चुमास चतुर तिहां छा (था) वइ ॥१३॥ कितु देख्या सुन्यान जाण्या, सो वेचइ धर्मकयाणा | वडा राय खित्रीआं राणा, प्रतिबोधइ शवर ( सरव? ) सुजाणा ॥ १४॥ इम पाटण अमदावादा, खंभायतका जगि नादा । खान आय मल्या बहु बंदा, नवा न का करि आक्रंदा (?) ||१५|| - सो हीरजी बंद छोडावइ, निज देस गाम घर पावइ । तस संघ पुण्यफल लेवइ, श्रीहीरकुं लाभ सुदेव ||१६|| पातसाह सनाषत चारा (?) ष वडा धर्मविणजारा । इस पासि वडे फुरमानां, सब जीवकुं अभयादानां ॥१७॥ Jain Education International 25 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520524
Book TitleAnusandhan 2003 06 SrNo 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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