SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20 अनुसंधान-२४ खइर महिर की वात न छूझइ, युं भावइ त्युं बोलइ बहुत करी मइ दिलकुं विच्यारा, हीर धर्म नही तोलइ बे ॥११॥ मइ फुरमान इउ फुरमाया, यो च्याही सो दीआ राउ विलतपइंडे किउं आ(?) सो जन कच्छूअ न लीआ ॥१२॥ हीर कहत पतिशाह-मुगामणि, हम योगी वइरागी खेल स्चीडोल(?)हयगय सुखासन उन तई हूए त्यागी बे ॥१३।। हम व्यवहारी वाणि पुत्र घरि मांगी खाणा खावइ रागी जमात (?)मा नही तनमइ वांकी वाट न पावइ बे ॥१४॥ पातशाह बहु वसु हेम धन पेसकसीमइ छोडं हीरबीजइसूरी कहि हजरत उनमइ कच्छूअ न लोडं बे ॥१५॥ मोती लाल पावि(मणि?) परवाले, देतइ कछूअ न लीना गाजीशाह कहि सब यूठे हीरा खरा नगीना बे ॥१६।। यो उसाफ सुण्या था तेरा सो मइंनय तुं देख्या पाकदिखें पूरा वइरागी उर न को जगि पेखा बे ॥१७॥ हदि अवंसा धरति छत्रपति यो च्याहीइ सो लीजि मांगू को दिन जीउ न मारि ता फुरमान सो दीजि बे ॥१८॥ पेस कीआ जही तुम मांग्या हीरविजइसूरि लेवइ शाह खिताब श्रीजगत्रगुर का पेमु करी तव देवइ बे ॥१९।। कोऊ मांगइ देस नवेरे दाम जरीना जोई हीरि उमरयना(?)वर मांगी उर न अइसा कोई बे ॥२०॥ शाह कहि हम ही थइ तेरे, च्यारि खंड मइ थाणां मई हुं गुणित देसका साहिब, तु त्रिभुवन सुलतानां बे ॥२१॥ सीस धरी फुरमान मेवडे, देस विदेसुं धावइ उहां के खान मलिक उंबरे सो शिर परिई चढावइ बे ॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520524
Book TitleAnusandhan 2003 06 SrNo 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy