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________________ June-2003 -13 श्रीविजवल्लीरास ॥ श्री सारदायै नमः ॥ दूहा ॥ आदिलप्रमुख श्रीजिनवरा, तास चरणि धरी मन्न । पुंडरीक थइ गणधरा, चौदसया बावन्न ॥१॥ गिरुआ चरणकमल नमी, सरसति दिउ आधार । श्री हीरविजयसूरी प्रगट, गाउं जग साधार ।।२।। वीरपाटि-उदयाचलि, उइदयु अविचल भाण । शाह अकब्बर विकट नृप, प्रतिबोध्यु सुरताण ॥३॥ बिरुद धरीयुं जगत्रगुर, महीतलि शाह टाली मारि । हीरा परि श्रीहीरजी, झगइ सकल संसारि ॥४॥ तास तणा च्यालीस उर, दोइ अधिक अभिराम । विमल वंश-परीआतणां, बोलुं व्यवरी नाम ||५|| संवत पांच दाहोतरि, श्रीनन्नसूरि प्रतिबोध । खीमाणंदी गोत्र जस, राठुडां वर जोध ॥६॥ गयवर हव्य(य)वर रथ सबल-पायक देश विशाल । प्रथम धर्मधोरी हुओ, श्रीरणसिंह भूपाल ||७|| ओश वंशनी थापना, थापी अरडक्कमल्ल । पुण्यपूरपूरी नदी, महीतलि चाली भल्ल ॥८॥ राग-सामेरी ॥ देवराज सुत तस वर, रिद्धि रूप सोहइ अमर ___ तस घर अभयचंद अंगज भणूं ए ॥१॥ तस सुत सोहइ नानसी, कीरति दीपइ भाणसी जाणसी करणु करणी बहू करि ए ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520524
Book TitleAnusandhan 2003 06 SrNo 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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