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________________ शंकर कवि प्रणीत विज(य)वल्लीरास ॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि तपगच्छपति श्रीहीरविजयसूरिना नाममां आवता 'विजय' शब्दने प्राधान्य आपीने, तेमना गुणगानरूपे रचायेल आ रास-रचना छे. वि.सं. १६५१मां 'शंकर' नामना कविए आ रास रच्यो होवानुं तेनी अन्तिम ढाळ परथी जाणी शकाय छे. __ आ रासनो उपयोग, मुनि विद्याविजयजीए, 'सूरीश्वर अने सम्राट' नामक प्रमाणभूत अने ऐतिहासिक ग्रन्थना निर्माणमां को हतो. परन्तु आ रास अद्यावधि प्रगट थयो नथी; तेनी प्रतिओ पण मळती नथी; अने हीरविजयसूरिने विषय बनावीने थयेली रचनाओनी प्रसिद्ध थयेली यादीओमां पण आनो उल्लेख नथी. 'सूरीश्वर अने सम्राट' मां अलबत्त, आनो सन्दर्भ सांपडी रहे छे. आ रासना रचयिता मुनि छे के गृहस्थ, ते जाणी शकातुं नथी. आ रासनी पंदरमी ढालनी छठ्ठी कडीमां "तपागछ पंडित गिरूआ सीसि वेली विजयसू गाई रे" एवो निर्देश छे, ते परथी 'शंकर' नामना मुनिनी आ रचना होय तेवी छाप पडे खरी. अने पोताना गुरुनुं नाम नथी लख्यु, तेथी कवि साक्षात् हीरविजयसूरिना शिष्य होवानी अटकळ पण करी शकाय. पण स्पष्ट प्रमाणनी गरज तो रहेज छे. आ रासनी प्रति कया भण्डारनी छे, तथा तेनी जेरोक्स नकल कोणे मोकली हती, ते बधुं अत्यारे तो विस्मृतप्राय छे. वर्षोथी आ प्रतिलिपि मारी पासे पडी छे. आर्छ आर्छ याद आवे छे के शिवपुरी (म.प्र.)ना ग्रन्थसंग्रहमां आ प्रति होय अने त्यांथी तेनी नकल श्री काशीनाथ सराक द्वारा मळी होवी जोईए. अन्य कोई भण्डारमा आ रचनानी प्रति होवानुं जाणवामां नथी. कवि ऋषभदासे सं. १६८५मां 'हीरविजयसूरिरास'नी रचना करी. ते एक सुदीर्घ अने सुग्रथित रचना छे. परंतु, प्रस्तुत विजयवल्ली रास साथे तेने मेळवीए, त्यारे तरत जणाई आवे के कवि ऋषभदासे आ विजयवल्ली रासना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520524
Book TitleAnusandhan 2003 06 SrNo 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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