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अनुसंधान-२४
'पर्युषण पर्व- सज्झाय'नी ढाळोमां ढाल १मां ने १२मां तो 'गुरु' शब्द विना ज 'ज्ञानविमल' एवं स्पष्ट नामाचरण छे, जे आ तेमनी ज रचना होवानुं पुरवार करी आपे छे. आम छतां संपादकीय निवेदनमां आना कर्तृत्व विषे सन्देह ऊभो करवानुं जोखम उठाववामां आव्युं छे ते समजातुं नथी. खरेखर तो आ विषे सन्देह उठाववानुं कोई वाजबी कारण ज जडतुं नथी. आटलुं संपादन-परत्वे. बाकी परंपरानी रीते धर्मध्यान करनार सर्व कोईने, धर्मक्रियामां खूब उपकारक आ पुस्तक बनशे तेमां शंकाने स्थान नथी.
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२. उपदेशमाला बालावबोध : अनुवाद सहित सं. प्रद्युम्नसूरि, प्रा. कान्तिभाई बी. शाह, प्रकाशक : श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अमदावाद, ई. २००३
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धर्मदासगणिकृत उपदेशमाला खूब प्रसिद्ध ग्रन्थ छे. तेना पर सं. १५८३मां श्रीनन्नसूरिए बालावबोध रचेलो, जे अहीं प्रथम वखत मुद्रित थाय छे. मजानी वात ए छे के संपादक श्रीए नोंध्या मुजब आ बालावबोधनी हाथपोथी छेक ब्रिटिश लायब्रेरी लंडनथी ज मळी, ने ते परथी संपादन करवामां आव्युं छे. गुजराती अनुवाद, शब्दकोश सहितनां मूल्यवान परिशिष्टोने कारणे ग्रन्थ खूब उपयोगी बनी रहेशे ते निःशंक छे.
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