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माहिती
नवां प्रकाशनो
श्रीज्ञानविमल सझायसंग्रह : सं. कीर्तिदा शाह, अभय दोशी, विनोदचन्द्र रमणलाल शाह, प्रकाशक : श्रीज्ञानविमल भक्तिप्रकाश प्रकाशन समिति, मुंबई, ई. २००३
श्री ज्ञानविमलसरि महाराज ए मध्यकालना एक सुख्यात अने सिद्धहस्त साधु-कवि छे. तेमनी सेंकडो रचनाओ उपलब्ध छे, अने तेमनी रचनाओ जैन भाविको भावपूर्वक गाय छे. आवी रचनाओनो एक संग्रह ई. १९९८मां आ ज समितिए छाप्यो हतो, 'श्रीज्ञानविमल भक्ति प्रकाश' ए नामे. प्रस्तुत पुस्तक ते तेनो बीजो विभाग छे एम मानी शकाय. एक कविनी घणीबधी रचनाओ एक ज स्थळेथी उपलब्ध कराववानो प्रयास प्रशंसापात्र छे.
सं. शब्द जेम 'संपादन' सूचवे, तेम 'संकलन' पण सूचवतो होय छे. प्रस्तुत पुस्तक माटे 'संकलन' अर्थ वधु अनुरूप गणाय. जोके संपादकोनी मध्यकालीन साहित्य विषयक सज्जतानो ख्याल करतां, आ प्रकाशन एक सरस अने अभ्यासपूर्ण संपादन बनी शक्युं होत, तेवी अपेक्षा जागे खरी. परंतु, आ एक संकलन के संग्रह ग्रन्थ मात्र छे, ते स्वीकारी लेवू ज पडेतेम छे. आम छता,आ संग्रहने संपादकोनी चीवटनो थोडो वधु लाभ मळ्यो होत तो घणी बधी अशुद्धिओ, मार्जन थई शक्युं होत, तेम कह्या विना रही न ज शकाय.
सर्व प्रथम तो पुस्तकना नाममां 'सझाय' शब्दनो अयोग्य प्रयोग ज वागे तेवो छे. 'सज्झाय' ए शुद्ध, मान्य, योग्य तथा प्रचलित प्रयोग छे. 'स्वाध्याय'- प्राकृत रूपान्तर छे 'सज्झाय'. ते आ प्रकाशनमां सर्वत्र 'सझाय' कई रीते बनी गयुं ते समजातुं नथी. धोळ, गरबी, फागु, रास, लावणी वगेरे काव्यप्रकारो जेवो ज 'सज्झाय' एक काव्यप्रकार होवामुं, हवे, मध्यकालीन साहित्यना कोई पण अभ्यासुने विदित होवू ज घटे, अने तेवा अभ्यासी आवा अजुगता परिवर्तनने क्षम्य के सह्य न ज गणी शके.
भूलो के अशुद्धिओ पण अगणित होवानुं प्रथम दर्शने ज जणाई
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