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________________ अनुसन्धान-२१, विहंगावलोकन ___ मुनि भुवनचन्द्र अनुसन्धान-२१मां नानी-मोटी ९ रचनाओ छपाई छे, विषय वैविध्य स्वयं सर्जायुं छे. अज्ञात-कर्तृक सप्तनयविवरण, विज्ञप्तिकासंग्रह, ऋषभतर्पण - आ कृतिओ ध्यान खेंचे एवी छे. अन्य सामग्री स्वाध्याय माटेनी सरस सामग्री पूरी पाडे छे. 'सप्तनयविवरण' नयवादनो प्राथमिक परिचय रोचक भाषामां आपे छे. स्याद्वादनुं पाठ्यपुस्तक करवू होय तो तेमां एक पाठ तरीके आने मूकी शकाय. सात नय, तेनां उदाहरणो, सुनय-दुर्नय, नय-प्रमाणनो भेद, सप्तभंगी आदि संबन्धित विषयो बीजरूपे आमां समाविष्ट छे. प्रदेशोमां सात नय ऊतार्या छे ते भाग संवादमय अने नवीनतावाळो छे. पृ. २ पर 'अनंतवर्णात्मक' छे त्यां हस्तप्रति पुनः चकासी जोवानी जरूर लागे छे. आवो शब्द आ विषयमां वपरातो नथी, वस्तु अनंतधर्मात्मक छे एवो ज प्रयोग प्रचलित छे, अहीं पण ते ज होय एम बने. तो वाचननी भूल गणवी पडे. पृ. ३ पर 'उभाभ्यां प्रकाशनाभ्यां' छे, अहीं अभिप्रेत छे प्रकार, तेथी संपादके काउन्समां 'प्रकाराभ्यां' लखवू जोइतुं हतुं. 'ऋषभतर्पण'ने संपादक 'जैन क्रियाकांड विषयक कृति गणावे छे. आवी कृतिओने जैन व्यक्ति द्वारा जैन स्वरूप अपायुं छे एटला एक कारणसर 'जैन' गणीए तो भले, बाकी आवा प्रकारनी विधिओ जैन दृष्टि साथे संगत नथी. वैदिक, ब्राह्मण अने क्यारेक तो तान्त्रिक परंपराओनी विधिओने आ रीते जैन वस्त्रो पहेराववाना प्रयासो ते ते काले थया छे. 'ऋषभतर्पण' अने 'आर्य वेदमन्त्रो' ए बन्ने आवी कृतिओ गणी शकाय. ते ते काले बहु ज प्रसार पामेली जैनेतर वस्तुओने जैन संस्कार आपी अव्यवस्था सर्जाती अटकाववाना तत्समयना सुज्ञ-चतुर मुनिपंडितोना प्रयास लेखे तेनी उचितता हशे, परंतु तेने सर्वदा उपयोगी के 'जैन' गणी न ज शकाय. ब्राह्मण अने जैन परंपराना संकलन-संमिश्रणनो मोटा पाया पर प्रयास भूतकाळमां थयो हतो - निगमगच्छ के निगमसंप्रदाय एनो पुरस्कर्ता हतो, पण ते वास्तवमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520523
Book TitleAnusandhan 2003 04 SrNo 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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