SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48 ज छे. ३. आ दुनियामां जेनामां बुराई वसे छे तेने ज सन्मान मळे छे. बधा ग्रहोमां जे सारा ग्रहो छे तेने भलो भलो करी छोडी देवामां आवे छे अने राहु, केतु जेवा खोटा ग्रहो आपणने नडे छे तेथी तेने जप, दान वगेरेथी रीझववामां आवे छे. एटलेके सज्जन सारो छे तेनी कोइ नोंध पण लेतुं नथी अने दुर्जनथी सौ बीवे छे तेथी तेने जप्या करे छे, नम्या करे छे. ४. एक कनक एटले धतुरो अने बीजो कनक एटले सुवर्ण. सुवर्णमां धतुरा करतां सोगणी मादकता छे. धतुरो खावाथी तनमां मादकता आवे छे, ज्यारे सुवर्णने तो मात्र मेळववाथी मादकता आवी जाय छे. पोतानी पासे रहेल सुवर्णने जोवा मात्रथी माणसमां मद के अहंकार आवी जाय छे. अनुसंधान - २३ आ प्रतनी गुजराती भाषा मारुगुर्जर शैलीनी छे. तेमां अपभ्रंश, राजस्थानी, व्रज भाषानी छांट छे. कर्तानुं नाम 'कर्ता' तरीकेना उल्लेखथी प्राप्त नथी थतुं, परंतु 'भोज' नामना लेखक ते ज कर्ता होय तेवी शक्यता नकारी शकाती नथी. श्री गुरुभ्यो नमः ॥ हिवइ चारि ध्यान कहइ छइ । तिहां ध्यानरा ४ भेद छइ । आर्तध्यान १ रुद्र ध्यान २ धर्म ध्यान ३ शुक्लध्यान ४ । तिहां पहिला २ ध्यान अशुभ छइ । अनइ बे ध्यान शुद्ध छइ । तिहां आर्तध्यान कहइ । मनमइ आहट दोहटना परिणाम ते आर्तध्यान कही |१| जे आर्तध्यानना पाया ४ छइ । पहिलो इष्टवियोग जे इष्ट कहतां वल्लभ भाई मित्रसयण मातापिता स्त्री पुत्र धन प्रमुखनो वियोग थयां जे चिंता सोग विलाप करइ ते इष्टवियोग आर्तध्यान कहीजइ |१| बीजो अनिष्टसंयोग कहतां अनिष्ट भुंडा दुःखना कारण दुसमण दलिद्र कुछोरु मिल्यां जे मनमइ दुःख चिंता उपजइ ते अनिष्टसंयोग आर्तध्यान कही |२| तीजो रोगचिंता आर्तध्यान जे शरीरमइ रोग उपनां दुःख करइ चिंता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520523
Book TitleAnusandhan 2003 04 SrNo 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy