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________________ निवेदन एक अगत्यनुं करवायोग्य काम दायकाओ अगाउ आपणे त्यां संशोधनने केन्द्रमा राखीने थोडांक सरस सामयिको प्रकाशित थतां, जेमां 'जैन साहियसंशोधक', 'पुरातत्त्व', 'जैन सत्यप्रकाश' इत्यादिनो समावेश थाय छे. आ नामो गणावती वेळाए मारा मनमां एक स्पष्ट समानता छ : गुजरातमांथी नीकळतां शोध-सामयिको. बाकी तो असंख्य जर्नल्स अने सामयिकोनां नामो लखवानां थाय. उपरोक्त सामयिको केटलोक वखत चाल्यां पछी, स्वाभाविक पणे ज, बंध पडेलां. परंतु, तेना समग्र अंकोनो संचय, आजे जवल्लेज कोई विद्यासंस्थामां सचवाएलो जोवा मळे. ज्यां छे, त्यां पण, घसारो, जर्जरता इत्यादि कारणे ते संचय, कालान्तरे, त्रुटित-खण्डित थवानी संभावना पूरती गणाय ज. आ सामयिक-सामग्री, काळदेवतार्नु भक्ष्य बनी बेसे ते पूर्वे, तेनो पुनरुद्धार थाय ते खूब जरूरी गणाय. आ माटे ते सामयिकोमा प्रकाशित विविध सामग्रीओना सरस चयनग्रन्थ-संपुटो प्रकाशित करवा जोईए. अलबत्त, आ काम खूब समय अने धनव्यय मागी लेतुं कार्य गणाय तेम छे, परन्तु ते बन्ने वानां संपडावी शके तेटली क्षमता तो आपणे त्यां छे ज. सवाल मात्र रुचिनो तथा दृष्टिनो छे. आशा सेवीए के आवी रुचि कोईकने जागे अने काळग्रस्त बनती जती अतिमूल्यवान, दुर्लभ सामग्रीने पुनर्जीवन बक्षे.. - शी. धवानी मान भक्ष्य बनामा प्रक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.520523
Book TitleAnusandhan 2003 04 SrNo 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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