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________________ 62 अनुसंधान-२२ टूक नोंध हेमाचार्यकृत ज्ञानसार (१) 'दुःषमाकाल श्रीसंघस्तवन'नी, अनुमानतः १८मा शतकमां लखायेली, आठ पत्रोनी एक हस्तप्रतिना ७मा पत्रनी पाछली बाजुना हांसियामां वांचवा मलतुं लखाण : "छावट्ठी कोडीउ, तेत्तीस लखाइ इचाल सया । एवं सावियाणं, मझिमगाणं गुणे भणिउ ॥४॥ ६६३३००४०० एतली श्राविका ॥ इति ज्ञानसारग्रन्थे हेमाचार्यकृते ।" आ हेमाचार्य कया ? मलधारी हेमचन्द्रसूरि हशे के कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य हशे ? 'ज्ञानसार' एवो ग्रन्थ तो आ बेमांना एक पण हेमाचार्यनो बनावेलो होवारों के मळतो होवानुं जाणवामां नथी आव्यु. तो नामफेर थयो होय अने मलधारी हेमाचार्यना रचेला अन्य कोई ग्रन्थनी आ गाथा होय तेवू बनी शके ? (२) उपा. विनयविजयजीनी शिष्यपरंपरा विषे मुनि श्रीधुरंधरविजयजीए पाठवेली, कल्पसूत्र-बालावबोधना एक पत्रनी झेरोक्स नकलमां वांचवा मळती पुष्पिका आ प्रमाणे छे : "श्रीविजेयहीरसूरीस्वरजी आचार्य तत् शिष्य कित्तिविजेय उपाधायजी तत् शिष्य ४ विनयविजयउपाधाय तत्सीष पं. श्री ५ पं. नरविजेय पंन्यास तत् शिष्य पं श्री ५ पं. वृधिवीजेय पंन्यास तत् शीष पं. श्री ५ पं. माणक्यविजेयगणी तत् सीष पं. श्री ५ पं. मेघविजेयगणी तत् शिष्य पं. मुक्ति वीजेजी तत् शिष पं. मोहनविजयजी भ्राता मु.रविवीजेजी भ्राता मुनी.... वीजय चेला मु. दांनविजेंजी त.चे.हेमचंदजी । संवत १८७८ ना वर्षे कार्तिक सुद १५ने वार सुक्रे कल्पसूत्र वषाण आठ संपूर्ण लखां छे वांचनार्थ । मु. तत्त्वविजयजी - घनोघबंदरे ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520522
Book TitleAnusandhan 2003 01 SrNo 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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