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________________ January-2003 चारित्र आराधवानइ काजिनं वलि समोसरणि बिठा चिहुं रूपे तिहां देउं छू ।' जउ प्रदक्षिणानुं ठाम न हुई तु ऊभु रही हाथ फेरवतु गाथा ३ कहइ । पछइ देहरुं पूंजई । वली बीजा देहरानी चिंता करई ॥ मुखकोश बांधी सूकडि केसर घसि पूजानी अनि तिलकनी जूजूई ऊसारि पूजानु ऊपसकर सघलु लेई ऊभु थाइ । गभारानि बारणि जईन‍ निसिही बीजी कहि । पंचांग प्रणाम करि वार ३ मस्तक भुइ लगाडइ । 'नमो जिणाणं' कहइ । पछइ आठपुडु मुखकोश करि, जिम मुखनु सास अनि नासिकानुं सास प्रतिमानइ न लागई ॥ हवि अंगपूजा लिखीइ छइ । जगन्नाथनु निर्माल्य ऊतारीइं । पछि पुंजणी प्रतिमा पुंजीइ । जीवनी यतना कीजइ । पषालनि सुगंध पाणी करी । माहिं सूकडि केसर फूल मुंकी कलश भरीइं । पछइ प्रतिमा प्रनालीइ बाजोठि अथवा थाली ऊपरि ऊंची मुंकीइं । कलश बिहुं हाथि लेई बालत्तणंमि सामिअ ! सुरगिरिसिहरंमि कणयकलसेहिं । तिअसासुरेहिं न्हविउ ते धन्ना जेहि दिट्ठो सि ॥ 37 अथवा 'स्नातस्या०' गाथा एक मुखि ऊचरतु ढालि । पछइ वालाकूची मइल टालि शुद्ध कीजि । तिहार पछी अंग लूहीइ । ते आंगलूहणा २ कीजि । ते अंगलूहणा सूकडि केसरि पीलां कीजइ । सुगंध ठामि मुकीइ । सुहाली भेरवना सष (प? ) २ कीजि । एक दिनना अंगलूहणां बीजि दिनि वासी मूकीइ । एवं अंगलूहणा ४ कीजि । पषालपाणी निर्माल जूजूआ राखीइ, निरवद्य भूमिकाई परठवीइं । उलंडाई नही । तिहां कुंथुआदिक जीव ऊपजइ नही तिम करीइ । वरसातमांहिं क्कलि ( फूलि ) न वलि तिम करी । भावि तिम नाखीइ तु आशातना लागि || पूजा करता भणीइ नही, वात न कीजि, षणीइ नही । एकाग्र चित पूजा उपरि राखी । सूकडि केसर कर्पूर लेई नवांगि सृष्टि पूजा कीजि । पग २ जानु ४ हाथ ६ षभा ८ मस्तक ९ । पछइ आभरण चडावीइ । पछि सृष्टि फूल चडावी । ते फूल अखंडित अम्लान काप्यां नहीं, जीवे खाधां नही, सर्व जाति, रूडि वस्त्रि घाली रूडे परि आण्या, एहवा चडावी । प्रथम मूलनायक पूजीइं । मूलनायकनि विशेष पूजा कीजि । जउ पहिलू विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520522
Book TitleAnusandhan 2003 01 SrNo 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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