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________________ निवेदन 'अनुसन्धान' पत्रिका शरु थई, त्यारे सद्गत हरिवल्लभ भायाणीनो आशय ए हतो के प्राकृत भाषाओना क्षेत्रमां थतां कार्योनी माहिती आपवी, अने ज्ञानभंडारोमां संघरायेली सामग्रीने प्रगट करवी. आ आशय प्रमाणे चालवानो आ पत्रिका सतत प्रयास तो करे छे. सवाल ए थतो रहे के वीतेला एक-दोढ सैकामां, जैन भंडारोमा संघरायेल असंख्य हाथपोथीओ-ग्रन्थोनुं संपादन- प्रकाशन थयुं छे : केटलुंक अद्यतन संपादन पद्धतिपूर्वक, तो मोटा भागनुं प्रणालिकागत रूपे. आमांनुं घणुं बधुं, आजना अभ्यासीओ माटे अज्ञात पण होय अने अलभ्य पण, तो ते बनवाजोग छे. ठेर ठेर जूना पुस्तकभंडारो अगाउ हता, जेमांथी घणानुं अस्तित्व आजे रघुं नथी. अने छतां, हजी घणा भंडारो छे, जेना माध्यमथी जूनां प्रकाशनो विषे जाणकारी मेळवी शकाय तेम छे. मुद्रित ग्रन्थो, तेना प्रकाशक-संपादक, प्रकाशन वर्ष, संपादनमां उपयुक्त हाथपोथीनुं तथा तेना भंडारनुं नाम आ बधुं नक्की जाणी शकाय, तो कया ग्रन्थो असंपादित - अप्रकाशित छे, तथा कया कया भंडारनी कई कई पोथी हजी अस्पृष्ट- अनुपयुक्त छे तेनो निश्चय थई शके. गंजावर काम छे आ. बहारनो बीजो पथारो संकेलीने एमां खोवाई जवा जेटली निष्ठा अने मनोबळ धरावनार व्यक्ति / व्यक्तिसमूह ज आ काम करी शके. अने आ काम थाय तो ते करनारने आजना तथा आवतीकालना अभ्यासीओना ऊंडा आशीर्वाद जरूर मळी रहे. भूतकाळमां 'जैन ग्रन्थावली', 'जैन ग्रन्थगाईड' जेवां कामो आ दिशामां थयां छे ज, तेनो लाभ घणो लई शकाय : बे रीते : तेना आधारे कार्यपद्धति नक्की करी शकाय; तेमां रहेली क्षतिओनुं नवा कार्यक्रममां निवारण करी शकाय. सद्भाग्ये, आपणे त्यां को' क को क खूणे आवा कार्य माटेनो सळवळाट चालु थई रह्यो होवानुं जाणवा मळे छे. ए सळवळाट जलदी जलदी नक्कर 'प्रकल्प' नुं स्वरूप धारण करीने कार्यान्वित थाय अने सर्व अभ्यासीओनो तेमां सहज सहयोग सांपडी आवे तेवी अभिलाषा - आ स्थानेंथी व्यक्त करवी उचित लागे छे. - शी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520522
Book TitleAnusandhan 2003 01 SrNo 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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