________________
22
एक अरीजीत मांन, आसिरवाद हो प्रमान, दोय बिरद उपमासुं प्रार्थनासौ गायो हें । यों भए सु चउदरत्न परखिई करी प्रयत्न, दधिको सुमंथ करी भांतसें बनायो हें । बुद्धि कीस गत्ति केलि उगत्ति जुगत्ति गेलि याहि थें समुद्रबंध दीपनें कहायों हें ॥१॥
अब १४ रत्न रितस्युं लिख देखावे हैं ।
या समुद्रबंध मांहे से ८ राजनिती आठ रत्न ।
४ आसिरवचन च्यार रत्न । १ बिरद ओपमा एक रत्न ।
१ कवि प्रार्थना एक रत्न । एवं १४ रत्न स्पष्ट लिखके समझावें हें ।
अनुसंधान-२२
सब जगत अरु विसेषें राजा होके स्त्रीको विश्वास साच मानवो नहीं । या नीति हैं | ताकुं भर्तृहरसतक प्रथम श्लोक हितचितंन ॥
यां चितयामि सततं मयि सा विरक्ता० ॥ इति प्रथम रत्न || एकोसरहार बंध ॥ १ ॥
राजा होकें राज तो करेई । पिण कुछक भगवत- भजन किया चाहीइं ॥ या राजनीती ॥ ताकुं राम - रछ्याको प्रथम श्लोक-हितशिक्षा ॥ चरितं रघुनाथस्य० ॥ इति द्वितीयरत्न || २|| दुसरहारबंध ||२||
राजा होकें दुष्टकुं सिक्षा करें । रहियेत प्रजाको प्रतिपालन करें । या नीती हें । ताकुं प्रस्थावक स्लोक हितसिक्षा ॥ दधी चंदन तंबोलं० ॥ इति तृतिय रत्न || ३ || ए दुसर हारबंध ||३||
राजा होके कछुक व्याकरण शब्द पढा चाहीई ॥ ताकुं सारस्वत व्याकरण को प्रथम श्लोक हितसिक्षा || प्रणम्य परमात्मानं ० ॥ इति चतुर्थ रत्न
||४|| वज्रबन्ध ||४||
राजा होंके कछुक हरीरस चातरी पढी चाहीई ॥ ताकुं बिहारीको दोहरो सिक्षा || मेरी भवबाधा हरो० ॥ इति पंचमरत्र || ५ || ए धनुषबंध |५| १. रैयत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org