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________________ स्वाध्याय आर्यवेद : जैन वेद - विजयशीलचन्द्रसूरि जैन परंपरामां थयेला प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवनो उल्लेख ऋग्वेद आदि वेदोमां तथा पुराणोमां अनेक वार थयो छे, जे ऋषभदेवना अस्तित्व तथा प्राचीनतानुं प्रमाण छे. ऋषभदेवना प्रथम पुत्र हता भरत, जेमना नामने 'भारतवर्ष' साथे जोडवामां आवे छे. आ राजा भरते, पिता तीर्थंकर ऋषभदेवना मुखे शास्त्रोनां रहस्यो तथा उपदेशोनुं सम्यक् श्रवण करीने, संसारना व्यवहार धर्मना उचित परिपालनना हेतुथी, तीर्थंकरनी संमति मेळवीने 'माहन' एटले के अहिंसाव्रतधारी जैन श्रावकरूप ब्राह्मणोनी तेम ज चार वेदोनी योजना - रचना करी हती, तेवी जैन मान्यता अमुक ग्रंथोमां उपलब्ध थाय छे. १. संस्कारदर्शन, २. संस्थानपरामर्शन, ३. तत्त्वावबोध, ४. विद्याप्रबोध एम चार नामो धरावतां ए चार वेदो द्वारा ते जैन ब्राह्मणो पेढीओ सुधी जैन गृहस्थोने गृहस्थधर्मोचित संस्कार, आचार, बोध वगेरे शीखवता हता. आ जैन ब्राह्मणो ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप रत्नत्रयीना करण, करावण, अनुमोदनरूप त्रण त्रण प्रकारो, एटले के ए रूपे नव तांतणांवाळी जनोई-जिनोपवीत पण धारण करता हता. विक्रमना बारमा सैकामां आचार्य श्रीवर्धमानसूरिए रचेला जैन कर्मकाण्डना सर्वमान्य ग्रंथ "आचारदिनकर"मां मनुष्यना सोळ संस्कारोनुं विधान छे, तेमां जिनोपवीत-संस्कार, पण विधान उपलब्ध छे. आ १६ संस्कारो माटेना अनुष्ठानमां आर्य वेदना मंत्रो पण प्रयोजवामां आवता हता, तेमांना जे मंत्रो आ ग्रंथमां जोवा मळे छे ते मंत्रो अत्रे रजू करेल छे. जैन वेदमंत्रो विशे ग्रंथकारे आपेली विगतो आ प्रमाणे छे : "इह यदुक्तं जैनवेदमन्त्रा इति तत् प्रतिपाद्यते । यदाऽऽदिदेवतनूज आदिमश्चक्री भरतो धृतावधिज्ञानः श्रीमयुगादिजिनरहस्योपदेशप्राप्तसम्यक्श्रुतज्ञान: सांसारिकव्यवहारसंस्कारस्थितये अर्हन्निदेशमाप्य माहनान् धृतज्ञानदर्शन-चारित्र रत्नात्रयकरणकारणानुमतित्रिगुणत्रिसूत्रमुद्राङ्कितवक्षःस्थलान् पूज्यान् अकल्पयत् । तदा च निजवैक्रियलब्ध्या चतुर्मुखीभूय वेदचतुष्कमुच्चचार । तद् यथा -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520521
Book TitleAnusandhan 2002 09 SrNo 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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